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________________ ओसवाल जाति का इतिहास को अधिक-से-अधिक प्राचीन सिद्ध करने के लोभ में, कुछ लोगों ने अपने-अपने गच्छों और अपने-अपने भाचार्यों की प्रतिष्टा को बढ़ाने के हेतु से, इन सब प्रमाणों के ऊपर पक्षपात का ऐसा गहरा रंग बड़ा दिया है कि उसमें से आज असलियत को ढूंढ निकालना भी बहुत कठिन हो गया है और बहुत-से इतिहास रसिक और पुरातत्ववेत्ता तो इस प्रकार की अतिशयोक्ति पूर्ण कातों पर विचार तक करने में बुराई समझने लग गये हैं। ऐसी स्थिति में ओसवाल जाति की उत्पत्ति का समय निर्णय करना किसी भी इतिहासवेत्ता . के लिये कितना कठिन, और दुरूह है यह बतलाने की ज़रूरत नहीं। फिर भी जो लेखक भोसवाल जाति का इतिहास लिखने के लिये बैठता है उसके लिये सबसे पहला और आवश्यक कर्तव्य यह हो जाता है कि इस जाति की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जो अधिक-से-अधिक सामग्री उपलब्ध हो, वह पाठकों के सम्मुख उपस्थित करदे । ऐसा किये बिना उसका पवित्र कर्त्तव्य पूरा नहीं हो सकता। इन्हीं सब बातों को मद्दे नज़र रखकर इस जाति की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जो महत्वपूर्ण तथ्य हमें प्राप्त हुए हैं वह हम नीचे प्रस्तुत करते हैं। इस समय भोसवाल जाति की उत्पत्ति के सम्बन्ध में तीन मत विशेषतया प्रचलित हैं। उन तीनों मतों पर हम पहाँ अलग-अलग रूप से विचार करते हैं। -पहला मत जैन ग्रंथों और जैनाचार्यों का है जिनके मतानुसार वीर निर्वाण संवत् ७० में अर्थात् वि० संवत् से करोब ४०० वर्ष पूर्व भीनमाल के राजा भीमसेन के पुत्र उपलदेव ने ओसियां नगरी (उपकेश नगरी) बसाई और भगवान पार्श्वनाथ के वे पाटधर उपकेश गच्छीय श्री आचार्य रत्नप्रभ सूरि ने उस राजा को प्रतिबोध देकर जैनधर्म की दीक्षा दी और उसी समय ओसवाल जाति की स्थापना की। २-दूसरा मत भाटों, भोजकों और सेवकों का है, जिनकी वंशावलियों से पता लगता है कि सम्वत् २२२ विक्रमी में उपलदेव राजा के समय में ओसियाँ (उपकेश नगरी) में रखप्रभसूरि के उपदेश से ओसवाल जाति के १८ मूल गौत्रों की स्थापना हुई। . ३तीसरा मत भाधुनिक इतिहासकारों का है जिन्होंने अपनी अकाव्य खोजों और गम्भीर गवेषणाओं के पश्चात् यह सिद्ध किया है कि विक्रमी सं० ९०० के पहले ओसवाल जाति और भोसियाँ नगरी का भस्तित्व न था। इसके पश्चात् भीनमाल के राजपुत्र उपलदेव ने मंडोर के पड़िहार राजा के पास आकर आश्रय ग्रहण किया और उसी की सहायता से ओसियाँ नगरी की बसाया। तभी से सम्भव है भोसवाल जाति की उत्पत्ति हुई हो। उपरोक्त तीनों मतों का विस्तृत विवेचन अब हम नीचे करते हैं:
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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