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ओसवाल जाति का इतिहास
रत्नप्रभूसार
आप महान भाचार्य श्री वादिदेवसूरिजी के शिष्य थे। संवत् १२३३ में आप विद्यमान थे। आपने प्राकृत भाषा में नेमिनाथ चरित्र नामक ग्रन्थ रचा। संवत् १२३८ में आपने भड़ोंच नगर में श्री धर्मदासकृत उपदेशमाला पर टीका की । इसके अतिरिक्त आपने श्री वादीदेवसूरि रचित "५याद्वाद रत्नाकर" की अत्यन्त गहन रत्नाकर अवसारिका नामक टीका की। इसके अलावा आपका इस समय कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हो रहा है। महेश्वरसूरि
आप भी वादिदेव सूरि के शिष्य थे। आपने पाक्षिक सप्तति नामक ग्रन्थ पर सुख प्रबोधिनी नामक टीका रची, जिसमें आपको वज्रसेन गणि से भी बहुत मदद मिली थी।
भासड
आप जैन साहित्य के महान् कवि और श्रावक थे । आप श्रीमाल वंश के कटुक राजा के पुत्र थे । उक्त राजा की जैन दर्शन में पूर्ण श्रद्धा थी। आपने जैन सिद्धान्त का बहुत गम्भीर अध्ययन किया था। आप "कवि सभा शृंगार' नामक उपाधि से विभूषित थे। इसके अतिरिक आपने कालिदास, मेघदूत पर और अनेक जैन स्तोत्रों पर टीकाएं रची । आपने उपदेश कंदली नामक एक पंथ भी बनाया । भापका “बाल सरस्वती" नामक प्रख्याति पाये हुये विद्वान पुत्र का तरुणावस्था में देहान्त हो गया था। इससे आप पर शोक का बहुत जोरों का प्रादुर्भाव हुआ। ऐसे समय में श्री अभयदेव सूरि ने भापको धर्मोपदेश देकर सात्वना दी। उन्हीं उपदेशों को ग्रंथित करके आपने विवेक मंजरी नामक ग्रंथ प्रकाशित किया।
बालचन्द्रसूरि
आप संस्कृत साहित्य के महान् कवि थे। आपने बसन्त विलास नामक एक बड़ा ही मधुर कान्य रचा । इस काव्य का रचना काल संवत् १२०७ से ८७ के मध्य तक अनुमान किया जाता है । इसके पहिले आपने आदि जिनेश्वर नामक स्तोत्र भी रचा था।
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