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[ २ ] हमें इस कार्य से वंचित रहना पड़ा। ओसवाल जाति के निर्माण करने वाले जैनाचार्यों के चिन देने का भी हमारा विचार था, मगर असली चित्र प्राप्त न होने की वजह से वह विचार भी हमको स्थागित कर देना पड़ा। अगर यह सब त्रुटियाँ पूर्ण हो गई होतीं, तो यह ग्रन्थ बहुत ही अधिक सुन्दा होता। फिर भी जिस रूप में यह प्रकाशित हो रहा है, हमारा दावा है कि अभीतक कोई भी जातीय इतिहास, भारतवर्ष में इसकी जोड़ का नहीं है। और हमें आशा है कि भविष्य में संदर जातीय इतिहासों की रचना करने वाले व्यक्तियों के लिये यह ग्रन्थ मार्ग दर्शक होगा। प्रेस सम्बन्धी जो अशुद्धियाँ इस ग्रन्थ के अंदर रह गई हैं, उसके लिये भी हमें बहुत बड़ा दुःख है। पर इतने बड़े कार्य के अन्दर जहाँ पचीसों व्यक्ति प्रफ पढ़ने वाले और मेटर तय्यार करने वाले हों, इस प्रकार की भूलों का होना स्वाभाविक है। दृष्टे दोष से या
और किन्हीं अभावों से इस ग्रन्थ के अंदर जो भूले, त्रुटियाँ और कमियाँ रह गई हों, पाठकों से हमारा निवेदन है कि उनके सम्बन्ध में वे हमें अवश्य सूचित करें, यथा साध्य अगले संस्करण में उनको सुधारने का प्रयत्न करेंगे। इस ग्रन्थ के "ओसवाल जाति की उत्पत्ति, अभ्युदय” इत्यादि एक दो अध्यायों को छोड़ कर, जितनी भी राजनैतिक, व्यापारिक और कोटुम्बिक इतिहास की सामग्री एकत्रित की गई है, वह सबओसवाल गृहस्थों के द्वारा ही हमें प्राप्त हुई है, अतएव उसके सही या गलत होने की जबाबदारी उन्हीं सज्जनों पर है।
. इस ग्रंथ के प्रणयन में जिन सजनों ने महान सहायताएँ पहुँचाई हैं उनमें से श्रीयुत राजमल जी ललवानी, सुगन्धचन्द्रजी लूणावत, रायबहादुर सिरेमलजी बापना सी० आई० ई०, मेहता फतेलालजी. स्वर्गीय सेठ चांदमलजी ढड्डा सी० आई० ई०, सेठ बहादुरसिंहजी सिंघी, बाबू पूरनचन्द्रजी नाहर एम० ए० बी० एल०, दीवान बहादुर सेठ केशरीसिंहजी, सिंघवी रघुनाथमलजी बैंकर्स, श्री कन्हैयालालजी भण्डारी, श्री ईसरचंदजी चौपड़ा, श्री इन्द्रमलजी लुणिया एवं श्री शुभकरणजी सुराणा का नामोल्लेख तो हम पहिले संरक्षकों के परिचय में कर ही चुके हैं। इनके अलावा मुनि ज्ञानसुन्दरजी, गणी रामलालजी तथा जैन साहित्य नो इतिहास के लेखक, फलौदी निवासी श्रीयुत फूलचंदजी और श्रीयुत नेमीचंदजी झाबक, मद्रास के श्रीयत मंगलचंदजी झाबक, श्रीयुत जसवंतमलजी सेठिया, हैदराबाद के श्रीयुत किशनलालजी गोठी. देहली के श्रीयुत गोकुलचन्दजी नाहर, अमृतसर के लाला रतनचन्दजी बरड़, जोधपुर के मेहता जसवंतरायजी, भण्डारी जीवनमलजी, भण्डारी अखेराजजी, भण्डारी विशनदासजी, मुहणोत वृद्धराजजी, मुहणोत सरदारमलजी तथा डड्डा मनोहरमलजी, कलकत्ते के श्री सोहनलालजी दूगड़, उदयपुर निवासी लेफ्टिनेंट कुँवर दलपतसिंहजी इत्यादि महानुभावों ने इस ग्रंथ के प्रणयन में जो अमूल्य सहायताएँ पहुँचाई हैं, उनके प्रति धन्यवाद प्रदर्शित करना हम अपना परम कर्तव्य समझते हैं। अंत में आदर्श प्रिंटिंग प्रेस अजमेर के संचालक बाबू जीतमलजी लुणिया को भी धन्यवाद देना भूल नहीं सकते, जिनके सौजन्य पूर्ण व्यवहार ने इस प्रन्थ की छपाई में हर तरह की सहूलियतें दीं।
एक बार फिर हम पाठकों को इस ग्रंथ की सफलता के लिए बधाई देते हैं और त्रुटियों के लिये क्षमा मांगते हैं। शांति मन्दिर, भानपुरा (इन्दौर) ।
भवदीयतारीख १-८-१९३४ ईस्वी ।
"लेखकगण"