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भूमिका
आज हम बड़ी प्रसन्नता के साथ इस महान ग्रन्थ को लेकर पाठकों के सम्मुख उपस्थित होते हैं। जिस समय हमने इस विशाल कार्य का बीड़ा उठाया था, उस समय हमें यह आशा न थी, कि यह कार्य इतने सर्वाङ्ग रूप में हम लोगों के द्वारा प्रस्तुत हो सकेगा। फिर भी महत्वाकांक्षा और उत्साह की एक प्रबल चिनगारी हमारे हृदयों में प्रदीप्त हो रही थी, और वह हमारे मार्ग को प्रकाशित कर रही थी। उसी की प्रेरणा से ज्यों ज्यों हम इसके अंदर घुसते गये, त्यों त्यों सर्वतोमुखी सफलता के दर्शन हमें होते गये। काम बड़ा कठिन था, परिश्रम भी बहुत बड़ा था, मगर हमारा उत्साह भी अदम्य था। इसीका परिणाम है, कि हिन्दुस्तान के कोने २ में बड़े से बड़े शहर और छोटे से छोटे गाँव में घर २ जाकर हम लोगों ने इस महान ग्रन्थ की सामग्री एकत्रित की। हमारी चार पार्टियों ने रेलवे और मोटर को मिलाकर करीब 1लाख मील की मुसाफिरी की । जाड़े की कड़कड़ाती हुई रातों और गर्मियों की धधकती हुई दुपहरियों में हमारे कार्यकर्ता अविश्रांत भाव से इसकी सामग्री संग्रह में जुटे रहे। इस प्रकार करीब २० महीनों के अनवरत परि से यह ग्रन्थ इस रूप में तयार हुआ ।
इस ग्रन्थ के अन्दर हमने ओसवाल जाति से सम्बन्ध रखने वाली प्रत्येक महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया है। इस जाति का इतिहास कितना महत्वपूर्ण और गौरवमय रहा है, यह बात इस इतिहास से पाठकों को भली भाँति रोशन हो जायगी। ऐसे महत्वपूर्ण इतिहास के प्रकाशन से कितना लाभ हुआ है, इसका निर्णय करना, हमारा नहीं प्रत्युत पाठकों का काम है।
हमें सब से बड़ी प्रसन्नता इस बात की है, कि भारत भर के ओसवाल गृहस्थों ने हमारी इस योजना का हृदय से स्वागत किया । जहाँ २ हम गये, वहाँ २ के सद्गृहस्थों ने हमारा बड़े प्रेम से स्वागत किया, तथा हमें हर तरह से सहायता पहुँचाने की कोशिश की। कहना न होगा, कि यदि इतना प्रबल सहयोग ओसवाल गृहस्थों की तरफ से हमें प्राप्त न हुआ होता, तो आज यह ग्रन्थ कदापि इस रूप में पाठकों की सेवा में न पहुँच पाता। .
यद्यपि ग्रन्थ के द्वारा जो सामग्री पाठकों के पास पहुंच रही है, वह बहुत पर्याप्त मात्रा में है, फिर भी इसके अंदर जो त्रुटियां शेष रह गई हैं, वे हमारी नजरों से छिपी हुई नहीं है। पहिली त्रुटि जो हमें खटक रही है, वह उन शिलालेखों का न दिया जाना है, जो ओसवाल जाति के सम्बन्ध में हमें प्राप्त हो सकते थे। यद्यपि इसके धार्मिक अध्याय में कई प्रधान २ शिला लेखों का वर्णन कर दिया गया है, फिर भी अनेकों ऐसे छोटे २ शिला लेख रह गये हैं जो अधिक महत्व पूर्ण न होने पर भी इस ग्रन्थ के लिए आवश्यक थे। दूसरी त्रुटि जिन प्रशस्तियों के फोटो हमने इस ग्रन्थ में दिये हैं, उनके अनुवाद यथास्थान हम नहीं सजा सके. इसका भी हमें अफसोस है। तीसरा यह विचार था कि भारतवर्ष के अंदर जितने ओसवाल ग्रेज्युएट्स और रिफार्मर्स हैं, उनका संक्षिप्त परिचय एक स्वतंत्र अध्याय में किया जाय । इसके लिए हमने बहुत पत्र न्यवहार भी किया, मगर खेद हैं कि उन लोगों के पूर्ण परिचय न आने की वजह से