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शधुंजय तीर्थ
रावजय तीर्थ और प्रोसवाल
शत्रुजय तीर्थ के माहाल्य के सम्बन्ध में कुछ भी लिखना सूर्य को दीपक दिखाना है । भारतवर्ष - प्रत्येक जैन गृहस्थ इस तीर्थ की महानता और माहात्म्य के सम्बन्ध में पूर्णतया परिचित है। खास करके श्वेताम्बर जैन समाज के अन्तर्गत तो इस तीर्थ की महिमा खूब ही मानी गई है। इस समाज के अन्तर्गत प्राचीन और अर्वाचीन काल में जितने भी संघ निकाले गये उनमें से अधिकांश से भी अधिक शर्बुजय और गिरनार के थे । इस तीर्थ के अन्दर इसके जीर्णोद्धार और इसकी जाहोजलाली के लिये ओसवाल श्रावकों में कितने महत्वपूर्ण काम किये, वे नीचे लिखे शिलालेखों से भली प्रकार प्रकट हो जायेंगे । शत्रआय तीर्थ और धर्मवरि समराशाह
... शत्रुजव तीर्थ वैसे तो बहुत प्राचीन है मगर समय के धक्कों से हमेशा मन्दिरों में टूट फूट और जीर्णता भाती ही रहती है, जिसका समय २ पर श्रद्धालु और समर्थ श्रावक पुनरुद्धार करवाते रहते हैं। मगर वि० सं० १३६९ में इस तीर्थ पर ऐसी भयङ्कर विपत्ति आई जैसी शायद न तो उसके पहले ही कभी भाई थीं और न उसके पश्चात ही।
___ वह समय अलाउद्दीन खिलजी का था-उसी अलाउद्दीन का जिसने महारानी पभिनी की रूप लालसा में पढ़कर चित्तौड़ का सर्वनाश कर दिया था। इस यवन-राजा की निर्दयता और धर्मान्धता के सम्बन्ध में इतिहास के पाठक भली प्रकार परिचित हैं। इसी अलाउद्दीन की फ़ौजों ने वि० सं० १३६९ में भानुजय तीर्थ पर हमला कर दिया। इन आक्रमणकारियों ने इस महान् तीर्थ को चौपट कर दिया। भनेकानेक भव्य मन्दिर और मूर्तियां न कर दी गई। यहाँ तक कि मूलनायक श्रीआदीश्वर भगवान की मूर्ति भी खण्डित कर दी गई।
___उस समय अणाहिलपुरपट्टण में ओसवाल जाति के श्रेष्ठि (वैद मुहता) गौत्रीय धर्मवीर देशल. शाह विद्यमान थे। ये बड़े धर्म भीरू और भावुक व्यक्ति थे। जब इन्होंने शत्रुक्षय तीर्थ के पाश का हाल सुना तो इन्हें बड़ा दुःख हुआ । इन्होंने अपने प्रतिभाशाली और धार्मिक पुत्र समराशाह से वह सब हाल कहा । सप समराशाह ने कहा कि जब तक मैं इस तीर्थराज का पुनरुद्धार न कर लूगा (3) भूमि पर सोऊंगा