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श्रो सवार
सवाल जाति के राजनैतिक और सैनिक महत्व के ऊपर गत अध्याय में हम काफी प्रका टाल चुके हैं। उसके पढ़ने से किसी भी निष्पक्ष पाठक को यह पता बहुत आसानी के साथ लग जाता है कि राजपूताने के मध्ययुगीन इतिहास में राजपूत राजाओं के अस्तित्व की रक्षा के अन्त र्गत इस जाति के मुत्सुहियों का कितना गहरा हाथ रहा है। कई बार इतिहास के अन्दर हमको ऐसी परि स्थितियाँ देखने को मिलती हैं, जिनसे लाभ उठाकर अगर वे लोग चाहते तो किसी राज्य के स्वामी हो सकते. थे। नवीन राज्यों की स्थापना कर सकते थे। मगर इन लोगों की स्वामिभकि इतनी तीव्र थी कि जिसकी वजह से उन्होंने कभी भी अपने मालिक के साथ विश्वासघात नहीं किया। उन्होंने सैनिक लड़ाइयाँ लड़ीं अपने मालिकों के लिये; राजनैतिक दावपेंच खेले वे भी अपने मालिकों के लिये; जो कुछ किया उसका फायदा उन्होंने सब अपने मालिकों को दिया। इस प्रकार राजनीति और युद्धनीति के साथ २ इनकी स्वामिभक्ति का आदर्श भी ऊँचा रहा बहुत है 1
अब इस अध्याय में हम यह देखना चाहते हैं कि इस जाति के पुरुषों मे धार्मिक क्षेत्र के अन्तः गत क्या २ महत्वपूर्ण काम किये । उनकी धार्मिक सेवाओं के लिये इतिहास का क्या मत है।
यहाँ पर यह बात ध्यान में रखना अत्यन्त आवश्यक है कि हर एक युग और हरएक परिस्थिति में जनता के धार्मिक आदर्श भिन्न २ होते हैं। एक परिस्थिति में जनता जिस धार्मिक आदर्श के पीछे मतवाली रहती है, दूसरी परिस्थिति में वह उसी आदर्श से उदासीन हो किसी दूसरे आदर्श के पीछे अपना सर्वस्व लगा देती है । एक समय था जब लोग अनेकानेक मन्दिरों का निर्माण करवाने में, बढ़े २ संघों को निकालने में, आचायों के पाट महोत्सव कराने में धर्म के सर्वोच्च आदर्श की सफलता समझते थे आज के नवीन युग
में शिक्षित और बुद्धिवादी व्यक्तियों का धर्म के इस आदर्श से बड़ा मतभेद हो सकता है। हमारा
भी हो सकता है, मगर इस मतभेद का यह अर्थ नहीं है कि हम उन महान् व्यक्तियों की उत्तम भावनाओं
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की इज्जत न करें। उन्होंने अपने महाम् आदशों के पीछे जो त्याग किया उसकी तो हमें इज्जत करनाही होगी, चाहे उन आदर्शों से हमारा कितना ही मतभेद क्यों न हो।
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