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श्रीसवाल जाति का इतिहास
I have no doubt that you prize those splendid traditions. I confidently believe that you will always strive to preserve and enhance them. It behoves you and your successive generations to see that the high example of duty and loyalty enshrined in those traditions is not in any way bedimmed or blurred in fut.
अर्थात् आपने मेरे और मेरे घराने के प्रति जिस राजभक्ति के भाव प्रदर्शित किये हैं। उन्हें मैं बहुत प्रसंद करता हूँ । आपकी जाति ने मेरे पूर्वजों की जो अमूल्य सेवाएं की हैं वह इस राज्य के इतिहास में प्रधान और चिरस्थाई स्थान गृहण करेगी। वह भक्ति पूर्ण सेवाओं का एक गौरवशाली इतिहास है। वास्तव में आपकी सदा स्थिर रहने वाली राज भक्ति और एक मन से की हुई कर्तव्य निष्टा- जो कि भूतकाल में इस राज्य के लिए बहुमूल्य सम्पत्ति रही है—मुझे उम्मीद है कि भविष्य में भी रहेगी — उसके प्रति मैं अधिक से अधिक सम्मान प्रदान करता हूँ ।
मुझे संदेह नहीं है कि आप अपने महान गौरवशाली इतिहास का बहुत मान करते होंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि आप हमेशा अपने गौरव पूर्ण इतिहास को सुस्थिर रखने का यत्न करेंगे। अगर आप और आपकी संतानें इस बात के लिये अवश्य थत्न करेंगी कि आपके इतिहास में कर्तव्य निष्ठा और राज्य भक्ति का जो प्रकाश है, उसमें भविष्य में किसी भी प्रकार कमी न आवे ।
उदयपुर (मेवाड़) के "ओसवाल" प्रधान, दीवान एवं फौज बख्शी
अब हम मारवाड़ की तरह मेवाड़ के कतिपय ओसवाल प्रधान, दीवान एवं सेनाध्यक्षों की सूची देते हैं । मारवाड़ की तरह मेवाड़ में भी अनेकों ओसवाल राजनीतिज्ञों और वीरों ने लगातार कई सौ वर्षों तक कठिन परिस्थितियों में राज्य की महान सेवाए की। हमें खेद है कि इन तमाम भोसवाल पुरुषों के हमें सिलसिलेवार पूरे नाम नहीं मिले हैं अतः हम बहुत थोड़ी नामावली यहाँ दे रहे हैं।
१ - कोठारी तोलाशाहजी - महाराणा सांगा के समय में प्रधानगी की ।
२ - * कोठारी कर्माशाहजी - राणा रतनसिंह के समय में प्रधानगी के पद पर काम किया ।
३ - निहालचन्दजी बोलिया - सम्वत् १६१० में चित्तौड़ में महाराणा उदयसिंहजी के समय प्रधान रहे । ४ - रंगाजी बोलिया – बड़े महाराणा अमरसिंहजी तथा महाराणा कर्णसिंहजी के समय में प्रधान रहे । ५ - सर्वस्य त्यागी, वीरवर भामाशाह कावड़िया - महाराणा प्रतापसिंहजी के राजस्व काल में आरंभ सेअंत तक एवं उनके पुत्र अमरसिंहजी के समय में संवत् १६५६ की माघ सुदी ११ तक ६ – कावड़िया जीवशाहजी ( भामाशाह के पुत्र) अपने पिता के बाद महाराणा अमरसिंहजी के समय में । - कावड़िया अक्षयराजजी ( जीवाशाह के पुत्र ) महाराणा कर्णसिंहजो के राज्यकाल में ।
* इन्होंने शत्रुंजय का उद्धार किया था। देखिये " धार्मिक विभाग "
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