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सवाल जाति का इतिहास
__उक्त रुक्के के आरंभिक हिस्से में कुछ खास घरू तौर की बातें हैं जो हमारे पाठकों के लिये अधिक दिलचस्पी की नहीं होंगी। पर इसके अंत में जो कुछ कहा गया है, वह मेहता हरिसिंहजी के प्रभाव को स्पष्ट करता है। वह इस प्रकार है। मेरे तो अब तुम्ही हो। जो कुछ तुम्हारी गति होगी वही मेरी भी होगी। तुम्हारी सब बातें हम स्मरण रखेंगे। चुरू और भादरा के रुक्के मांगते हैं, वे तुम्हारी बिना सलाह के नहीं देंगे।
इसी प्रकार इस कुटुम्ब में मेहता केशरीसिंहजी, मेहता अभयसिंहजी, मेहता छत्रसिंहजी, महाराव सवाईसिंहजी आदि आदि कई प्रभावशाली पुरुष हुए जिन्होंने अपने अपने समय में राज्य की अच्छी सेवाएँ की । इन सबका विस्तृत विवरण हम आगे इनके पारवारिक परिचय में देंगे। दीवान अमरचन्दर्जा सुराणा
महाराजा सूरतसिंहजी के राज्यकाल में जिन ओसवाल मुत्सुद्दियों ने अपने महान् कार्य के द्वारा राजस्थान के इतिहास में प्रसिद्धि पाई है उनमें अमरचन्दजी सुराणा का भासम बहुत ऊँचा है। सम्वत् १८५२ (ई. सन् १८०५) में बीकानेर राज्य की ओर से सुराणा अमरचन्दजी जापताखाँ पर आक्रमण करने के लिये भेजे गये। इन्होंने उसकी राजशनी भटनेर को घेर लिया। जापताखाँ भी पांच मास तक बड़ी बहादुरी से लड़ा और अंत में विजय से निराश होकर वह किले से भाग गया। इस वीरता के उप. कक्ष में महाराजा साहब ने अमरचन्दजी को दीवान के उच्च पद पर नियुक्त किया । . संवत् १८७२ में सुराणा अमरचन्दजी चुरू के ठाकुर शिवसिंहजी के मुकाबिले पर भेजे गये । आपने चुरू शहर को घेर लिया और उक्त शहर का आवागमन विलकुल बन्द कर दिया। इससे चुरू के ठाकुर की कठिनाई बहुत बढ़ गई और अधिक समय तक युद्ध करने में असमर्थ हो गये । उन्होंने (चुरू के ठाकुर ) विजय की आशा खोदी और अपने अपमान के बजाय मृत्यु को उचित समझा और आत्मघात कर लिया। बीकानेर के तत्कालीन महाराजा ने अमरचन्दजी की वीरता से प्रसन्न होकर उनको 'राव' की पदवी, एक खिलअत तथा सवारी के लिये एक हाथी प्रदान किया। राजलदेसर का वेद परिवार
बीकानेर राज्य में राजलदेसर नामक एक गाँव है। कहा जाता है कि बीकानेर बसने के पूर्व यहाँ पर एक स्वतंत्र राज्य था। जिस समय इस स्थान पर राजा रामसिंहजी राज्य कर रहे थे उस समय मोता हरिसिंहजी वेद नामक एक पोसवाल सज्जन उनके दीवान थे। उक्त वेद परिवार की ख्यात में