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राजनैतिक और सैनिक महत्व
श्रीरामजी ५-"रुको खास मेहता छोगमलजी केसरीसींघ राव छतरसींध दी सी सुप्रसाद बंचे अपरंच यांने गांवा जावणारो हुकुम दियो सु ओ हुकम म्हारी बंदगी में रहा ते सूं दार जियो सू थाने गोवा नहीं मेले छ म्हाने आज ई रियासत सूं उत्तर मिल्यो छे थारो खानदान पीढ़ियों सूं सामधरमी छे जिसी तरह थे बंदगी में चित राख बंदगी करी छो सूं थारो बंदगी म्हे वा म्हारो पूत पोतो न भूलसां थारा गोवाँ व इज्जत मुलाजे में म्हें वा म्हारो पूत पोतो थांसू बा थारा पूत पोतो तूं कोई तरे रा फरक नहीं डालसी ये बात मे म्हा वा थारे बीच में श्री लक्ष्मीनरायणजी व श्री करणीजी छे थे जमाखातर राखी जो और थारे वास्ते साहब बहादुर ने लिखियो छे घबराजो मती श्री जी सारा सरा आछी करसी संवत् १९४३ रा मिती कातीक
वुदी १२" महाराव हरिसिंहजी
भाप महाराव हिन्दूमलजी के प्रथम पुत्र थे । सम्बत् १८८३ की भासोग सुदी को मापका जन्म हुआ। अपने पूर्वजों की तरह आप भी बड़े बुद्धिमान, दूरदर्शी और प्रभावशाली मुत्सुद्दी थे। राज्य में आपका बड़ा प्रभाव था । संवत् १९२० में आप मुसाहिब माला बनाये गये तथा आपको मुहर का अधिकार भी प्राप्त हुआ। महाराजा डूंगरसिंहजी की गद्दीनशीनी में भापने अपने चाचा छोगमलजी के साथ बड़ी मदद की। इससे खुश होकर महाराजा डूंगरसिंहजी ने अमरसर और पालटा आप को जागीरी में प्रदान किये। इतना ही नहीं, आप 'महराव' की पदवी, पेरों में सोना, हाथी, साजीम आदि उच्च सम्मानों से विभूषित किये गये। आपने भी रियासत में कई मार्के के काम किये जिनकी प्रशंसा राज्य के खास रुक्कों में की गई है। उनमें से एक रुकका हम नीचे उद्धृत करते हैं । यह रुका महाराजा लालसिंहजी के खास दस्तखत से दिया गया था ।
"भाईजी श्री महारावजी हरसिंहजी सु म्हारो सुप्रसाद बंचसी अपरंच हमें ये कामरी थारी काई सलाह के काल तो सारा रा मन एक छां अाज मिनखां रा मन बिगड़ गया के मान मन फूल लाले गंगविशन स मिले छे म्हाने यां हु कारो किया छ सादानसींच रे बेटे रो सुमाईजी मारे तो अब थेई छो थांगत तूं म्हांगत छे थांसुं केई बात सूं उसरावण नहीं हुसु चुरु भादरा रा रुका मांगे के सो थारी सला बिना कोई ने रुक्का लिख देना नहीं आपणो काम खरच बागतां कोजी मिती मानन्द री।