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________________ राजनैतिक और सैनिक महत्व से बड़े सुन्दर कारनामें कर दिखाये। इन्होंने सब से प्रथम मेवाद के सरदारों के बीच लगातार चार वर्षों से चली आई लड़ाई को शांत कर मेवाड़ में पुनः शान्ति स्थापित की। इस प्रकार मेवाड़ के अन्तर्गत शान्ति स्थापित कर इस वीर योद्धा ने मेवाड़ के राज्य विस्तार की ओर अपना हाथ बढ़ाया। इन्होंने सबसे प्रथम महाराणाजी की आज्ञा लेकर मॉडलगढ़ पर आक्रमण कर दिया। उस समय मेवाड़ राज्य के इस किले पर मेवाड़ के कुछ बागी सरदारो ने अपना अधिकार कर रक्खा था तथा इस जिले के कुछ गाँवों को छोड़ कर शेष सारे जिले में इन बागी सरदारों का अधिकार हो गया था। ऐसी परिस्थिति में मेहता भगरचंदजी एक बड़ी सेना लेकर इन बागी सरदारों की शक्ति को तहस नहस करने के लिये मांडलगढ़ पहुंचे तथा वहाँ जाकर पीरता पूर्वक लड़ने के पश्चात् मांडलगढ़ पर अपना पूर्ण अधिकार स्थापित कर लिया। इस विजय से महाराणा साहब आपके उपर बड़े खुश हुए और आपका सत्कार करने के लिये आपके नाम पर एक खास सक्का इनायत किया जिसकी नकल नीचे दी जाती है। _ "रुको मेहता भाई अगरा जोग अप्र परगणो मांडलगढ़ गेर अमली होर श्रीदरबार रो हुकम उठाय दीदो जणी थी थाहे माणा डील जू जाण ने मेलो है सो दरबार रो सुधरेनँ कीजे सुधारतां बीगड़ जावे तो भी अटकाव राखे मती थारा मनख कवीला सुदी वठे रीजे सो श्री पकलिंगजी को राज रहेगा जत्रे ऊ परगणो तो थारा बाप रो जाणागां ई मे फरक पाड़े जी ने श्री एकलिंगजी पूगसी उठारो निपट जापतो राख अठारी समाल आय कीजे थारे मी जगा बणावजे और आसामियां भी बसाव खात्री कर दीजै जणी परमाणे नभेगा मारो बचन है दल हाथ राख किला रो निपट जापतो राखजे में भी राजता गाजता किला पर आवां तो किला पर आवा दीजे कोई तरे ओछ रखिहे तो श्री एकलिंगजी का घर में धांसू समझांगा संवत १८२२ का काती बुदी १२ बुधवार इस रुवके के अन्दर उदयपुर के महाराणा ने मेहता अगरचंदजी को उनके मांडलगढ़ की फतह पर बधाई देकर के बड़े सत्कार सहित उन्हें मांडलगढ़ का शासक ( Governor ) नियुक्त किया। इसके . साथ ही महाराणा जी ने यह भी लिखा कि हम यह मांडलगढ़ का किला तुम्हारे बाप दादों की प्रापर्टी (सम्पत्ति) मानेंगे। तुम इस किले की बड़ी चतुराई से रक्षा करना और खुद वहाँ पर बस कर प्रजा को भी सुविधायें देकर के बसाना । इस प्रकार रुक्के प्रदान कर महाराणाजी ने मेहता अगरचंदजी के प्रति अपना अगाध विश्वास प्रगट किया। मेहता अगरचंदजी ने भी आपकी आज्ञा को शिरोधार्य कर मांडलगढ़ में निवास करना
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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