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छाजेड़
छाजेड़ गौत्र की उत्पात — ऐसी किम्बदन्ति है कि सबीबाणगढ़ नामक स्थान में राठोड़ राजपूत धांधल रामदेव के पुत्र काजल निवास करते थे । इन्हें चमत्कारों पर विश्वास नहीं था । अतएव ये हमेशा इसी खोज में रहते थे एक बार उन्हें श्री जिनचन्द्रसूरि ने इन्हें चमत्कार बतलाया कहा जाता है कि उन्होंने इन्हें ऐसा वासक्षेप चूर्ण दिया कि जो दीपमालिका की रात्रि में जहाँ डाला जाय वह स्थान सोने का होजाय । इन्होंने चूर्ण प्राप्त कर मन्दिर उपाश्रय और अपने घर के छज्जों पर डाल कर सूरिजी की परीक्षा करनी चाही । कहना न होगा कि सुबह सब छज्जे सोने के हो गये । यह चमत्कार देखकर काजल ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया । तब ही से इनके वंशज छज्जे से छजेहड़ कहलाये । आगे चल कर यही नाम छाजेड़ रूप में बदल गया ।
रायबहादुर सेठ लखमीचन्दजी छाजेड़ का खानदान, किशनगढ़
इस परिवार के पूर्व पुरुष सेठ कल्याणमलजी छाजेड़ सन् १८४८ में व्यापार के लिए अपने निवासस्थान किशनगढ़ से झांसी गये और जाकर दमोह तहसील के खजांची हुए। वहाँ के कप्तान डी० रास आपको अपने साथ पंजाब ले गये तथा सन् १८४९ में लय्या कमिश्नरी का खजांची बनाया । आप वहाँ के दरबारी तथा म्यु० मेम्बर थे । लख्या कमिश्नरी के टूट जाने पर आप सन् १८६० में देराइस्माइल खाँ के खजांची हुए । सन् १८७७ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र लखमीचन्दजी तथा रामचन्दजी हुए ।
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मिला तथा सन १९११ में देहलीदरबार के सन १९१२ में आपका स्वर्गवास हुआ।
रा० ब० सेठ लखमीचन्दजी छाजेड़-अप देहरागाजीखाँ के म्यु० मेम्बर थे । पिताजी के गुजरने पर आप देहराइस्माईलखाँ कमिश्नरी के खजांची बनाये गये साथ ही सब जिलों के म्युनिसिपल ट्रेसर भी आप निर्वाचित हुए। आप इक्कीस सालों तक वहाँ ऑनरेरी मजिस्ट्रेट रहे । किशनगढ़ स्टेट ने आपको दरबारी बैठक और "शाह" की पदवी दी । किशनगढ़ स्टेट ने आपको सन् १९०२ में देहलीदरबार में भेजा । १९०१ में फ्रांटियर में मासूद ब्लांकेट शुरू हुई, उसमें आपने बहुत इमदाद दी । १९०६ में आपको "रायसाहिब" का खिताब समय आप " रायबहादुर" के सम्मान से विभूषित किये गये । आपके छोटे भ्राता रामचन्द्रजी देहरा. गाजीखाँ के ट्रेशरर रहे। अभी उनके पुत्र हीराचन्दजी इस खजाने का काम देखते हैं। सेठ लखमीचन्दजी ने किशनगढ़ स्टेशन पर एक धर्मशाला बनवाई। आपके गोपीचन्दजी तथा अमरचन्दजी नामक दो पुत्र हैं । रायसाहब गोपीचन्दजी — आपका जन्म संवत् १९४७ में हुआ । पर वेराइस्माईलखा, गाजीखाँ, बन्नू और मियांवाली के खजांची हुए। १५ सालों तक देहरा इस्माईल खाँ में आप ऑनरेरी मजिस्ट्रेट रहे । वायसराय ने आपको सन् १९१७ में सेंट जॉन एम्बुलेंस का ऑनरेरी कौंसिलर बनाया। सन् १९२१ में आप शाही दरबारी बनाये गये । तथा इसके २ साल बाद आपको रायसाहिब का खिताब इनायत हुआ । इसी तरह आप वहाँ की कई सरकारी
आप अपने पिताजी के स्थान
वहाँ के आप दरबारी थे ।
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