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________________ सवाल जाति का इतिहास इसी तरह इस परिवार में श्री गणेशलालजी उदयपुर में निवास करते हैं । आपने बी० ए० तक शिक्षण पाया है। फूलचन्दनी वयोवृद्ध सज्जन हैं तथा शाहपुरा में रहते हैं । तथा उदयसिंहजी पुत्र 'मोहनसिंहजी शाहपुरा स्कूल में सर्विस करते हैं । के रामपुरिया रामपुरिया नाम की स्थापना इस परिवार के सज्जनों का मूल गौत्र चोरड़िया है। जिसका विवरण ऊपर दिया जा चुका है। इस परिवार के पूर्व पुरुष रामपुरा ( इन्दौर स्टेट ) नामक स्थान में निवास करते थे। वहां इस वंश में क्रमशः मेहराजनी, लालचन्दजी, नथमलजी, हीराचन्दजी, हरध्यानसिंहजी, और खींवसीजी हुए। खींवसीजी के तीन पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः मानसिंहजी, बुधसिंहजी और जगरूपजी था । जगरूपजी के चार पुत्र हुए, जीवराजजी, राजरूपजी, जसरूपजो और प्रेमराजजी । इनमें से जीवराजजी के ६ पुत्र हुए, जिनके नाम क्रमशः शिवराजजी, शेरसिंहजी, विजयराजजी, भींवराजजी, गुणोजी और सुल्तानजी था। इनमें से शेरसिंहजी के भेरोंदानजी नामक पुत्र हुए, शेष निःसन्तान रहे । सेठ भैरोंदान के चार पुत्र हुए, जिनके नाम क्रमशः सेठ जालमचन्दजी, आलमचन्दजी, केवलचंद जी, और गम्भीरमलजी था । इनमें से जालमचन्दजी का वंश आज भी रामपुरा में निवास कर रहा है 1 आलमचन्दजी के लिये कहा जाता है कि रामपुरे के चंद्रावतों की एक कन्या का विवाह बीकानेर के महाराजा के साथ हुआ, उसी समय आप बाईजी के कामदार बनाकर बीकानेर भेजे गये । आपके साथ में आपके वंशज आये जिनका खानदान बीकानेर में निवास कर रहा है। आलमचन्दजी को बीकानेर दरबार मे राज्य में काम पर नियुक्त किया। जिसे भाज तक आपके खानदान वाले करते आ रहे हैं। रामपुर से आने के कारण ही आप लोगों के वंशज रामपुरिया कहलाये । और जिस स्थान पर आप लोग काम करते थे वह दफ्तर आप ही के नाम से 'दफ्तर रामपुरिया' कहलाता चला आ रहा है। सुजानगढ़ का रामपुरिया परिवार सेउ आलमचन्दजी के चार पुत्र हुए, जिनके नाम क्रमशः विरदीचन्दजी, गणेश दासजी, चुनीलाल जी और चौथमलजी था । आप चारों भाई करीब १०० वर्ष पूर्व बीकानेर छोड़कर सुजानगढ़ नामक स्थान पर चले आये । आप लोगों ने मिलकर संवत् १९१३ में मेसर्स चुन्नीलाल चौथमल के नाम से कलकत्ता में फर्म स्थापित की। इनमें आपको अच्छी सफलता रही। संवत् १९५० के पूर्व केवल चौथमलजी को छोड़ कर शेष भाई स्वर्गवासी हो गये । इसके पश्चात् ही आपके वंशज अलग होगये और अपना स्वतंत्र व्यापार करने लगे । ५१२
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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