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________________ मोसवाल आति का इतिहास करते रहे। इन दोनों सज्जनों ने जयपुर के व्यापारिक समाज में अच्छा नाम पाया । सेठ दुलीचन्दजी का संवत् १९१० के जेठ मास में स्वर्गवास हो गया। आपके यहाँ सेठ हमीरमलजी बीकानेर से संवत् १९४९ में दसक आये। आप संवत् १९६९ से पना का व्यापार करते हैं। यहाँ से पना तय्यार करवा कर विदेशों में तथा भारत में भेजते हैं। इस व्यापार में आपने अच्छी सम्पत्ति व प्रतिष्ठा उपार्जित को है । इसके साथ २ धार्मिक कामों की ओर आपका बड़ा लक्ष है। एवं इस काम में आपने हजारों रुपये व्यय किये हैं। आप स्थानीय जैन भाविकाश्रम तथा कन्या पाठशाला के कोषाध्यक्ष है। आप जयपुर के ओस. वाल समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। आप मन्दिर मार्गीय आम्नाय के हैं। आपने अपने यहाँ दानमलजी गोलेछा के पुत्र मनोहरमलजी को दत्तक लिया है। आप भी कार बार में भाग लेते हैं। सेठ भैरोंदान पूनमचन्द गोलेछा, कलकत्ता इस परिवार के पूर्व पुरुष तोल्यासर (बीकानेर) के निवासी थे। तोल्यासर में सेठ सुखलालजी तथा उदयचन्दजी हुए। आप दोनों भाई २ थे। आप लोगों ने वहाँ किराना एवम् कपड़े का थोक व्यापार किया। आप लोग बीकानेर भी अपना काम काज करते रहे। आपका स्वर्गवास हो गया। सेठ सुखलालजी के कोई पुत्र न था। सेठ उदयचन्दजी के दो पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः सेठ नेणचन्दजी एवम् सेठ सागरमलजी थे। आप दोनों भाई भी वहीं बीकानेर तथा तोल्यासर में व्यापार करते रहे । जेठ नेणचंदजी सेठ सुखलालजी के यहाँ दत्तक गये। आप लोगों का भी स्वर्गवास हो गया। सेठ नेणचन्दजी के एक पुत्र है जिनका नाम सेठ भैरोंदानजी है। सेठ मैरोंदानजी-आपका जन्म सम्वत् १९३० में हुआ। आप केवल १५ वर्ष की अल्पायु ४. में संवत् १९४५ में कलकत्ता म्यापार के लिये गये। तथा यहाँ आकर आपने पहले खेतसीदास तनसुखदास सरदार शहर वालों की फर्म में रोकड़ तथा अदालत वगैरह का काम किया। यह काम आप सम्वत् १९६९ तक करते रहे । इसमें आपने बहुत उन्नति की। आपकी ईमानदारी, होशियारी एवम् व्यापार संचालनता को देख कर मालिक लोग आप पर हमेशा प्रसन्न रहा करते थे। आप बड़े होशियार एवम् समझदार सजन हैं। आपने खेतसीदास तनसुखदास के यहाँ से काम छोड़ते ही अपनी निज की फर्म उपरोक्त नाम से गणेशभगत के कटले में स्थापित की। तथा वहाँ कपड़े का व्यापार प्रारम्भ किया। आप डायरेक्ट विलायत से पेचक मँगवाते थे तथा थोक व्यापारियों को बेचते थे। इस व्यापार में भी आपने अपनी व्यापार कुशलता का परिचय दिया एवम् बहुत ज्यादा उन्नति की । यह काम सन् १९३० तक करते रहे। इसके बाद भापने कपड़े का काम बन्द कर दिया। एवम् बंगाल के प्रसिद्ध
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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