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जीवोंके कल्याणकामी तेरापंथी साधु-साध्वियां देशके, समाजके, राष्ट्रके, व विश्वके गौरव-रूप हैं।
तेरापंथी साध समाजमें विद्या प्रचार । आज कल विद्वानोंका समादर सर्वत्र है। शास्त्रोंका अध्ययन, अध्यापन, व्याख्यान आदिके लिये विद्या चर्चाकी बहुत जरूरत है। परमपूज्य पुज्यजी महाराजाधिराज सकलगुणनिधान बालब्रह्मचारी श्री श्री १००८ श्री कालुरालजी स्वामीके समयमें तेरापंथी साधु सम्प्रदायमें अच्छे २ विद्वान एवं पण्डित मुनिराजोंका प्रादुर्भाव हुआ है। १०।१२ वर्षकी उम्रमें दीक्षित साधुगण अल्प समयके भीतर संस्कृतके इतने ज्ञाता हो जाते हैं कि देखनेसे आश्चर्य होता है। कम उम्रके साधु मुनिराजों द्वारा प्रणीत 'भक्तामर' व 'कल्याणमन्दिर' जैसे स्तोत्रोंके पाद पूर्तिरूप, 'कालु-भक्तामर स्तोत्र' एवं 'कालु-कल्याण मन्दिर' आदि काव्योंको अवलोकन कर बहुतसे विद्वान मुग्ध हुए हैं। श्री पूज्यजी महाराजकी देख रेखमें साधुओंके शिक्षार्थ एक संस्कृत व्याकरणकी रचना हुई है, जो कि एक अपूर्व ग्रन्थ है । वैज्ञानिक शैलीसे समस्त व्याकरणोंका सार लेकर व्याकरण-सूत्र व वृत्ति बनाना कम पांडित्यका काम नहीं । ___ हम समस्त जैन एवं जैनेतर विद्वानोंसे, दार्शनिक एवं धार्मिक तत्त्वोंके जिज्ञासु एवं खासकर जैन-शास्त्र व साहित्यके अनुसन्धान प्रेमी सज्जनोंसे अनुरोध करते हैं कि वे जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी सम्प्रदायके आचार्य महाराज और उनके साधु साध्वीवर्गका दर्शन करें एवं उनके संयम, त्याग, वैराग्य तथा तपस्या मय जीवनमें एक नवीन ज्योति, नवीन आदर्श, और नवीन संगठनका आदर्श सम्मेलन देखकर कृतकृत्य होवें।