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ऐसे दानकी आज्ञा करते हैं, इसके अतिरिक्त जो सावध दान हैं - जिनमें असंयति जीवोंका पोषण होता है या जिनमें अस्थति जीवोंकी घात होती है या दूसरे पाप बढ़ते हैं वैसे दान धार्मिक दृष्टिसे सर्वदा अकरणीय है सांसिरिक दृष्टिसे कोई करे तो वह दूसरी बात है ।
तेरापंथी साधुवोंके तपस्याका दिग्दर्शन ।
तेरापंथी साधु बहुत उग्र तपस्याएँ करते हैं। श्री मुखांजी नामकी एक साध्वीने निरन्तर २६७ दिनोंका उपवास किया था । इस लम्बे उपवासमें उन्होंने उबाली छुई छाछके उपरका पानीके अतिरिक्त कोई आहार नहीं लिया । कई साधुओंने केवल जल पर ही १०८ दिन निकाले हैं। एक साध्वी आचार्याने २२ दिन बिना अन्न जलके निकाले थे । तेरापन्थी साधुओंका आचार निष्ठा उनका संगठन व नियमानुवतिता तथा तपस्या मय जीवन-जो उन्हें देखते हैं, सबको मोहित करते हैं।
तेरापन्थी सम्प्रदाय के साधु साध्वियोंमें बहुतसी महत्वपूर्ण तपस्याएँ हुई है। यहां तो दृष्टान्त स्वरूप केवल थोड़े से ही तपस्याओंका वर्णन दिया जाता है। रात्रिमें जैन साधु साध्वियाँ कोई भी चीज नहीं खाते यह पहिले कह चुके हैं। उपवासका पारण वे सूर्योदयके बाद ही करते हैं । उपवास करते हुए दिनके समय गरमजल या छाछके उपरका जल ही ले सकते हैं, और कुछ नहीं ।
प्रथम दो आचार्योंके शासनकालमें छह महिने तकका निरन्तर तपस्या नहीं हुई थी । तृतीय आचार्य महाराज श्री रायचन्दजीके शासनकालमें पहले पहिल छह महीनेका निरन्तर उपवास स्वामी पृथ्वीराजजी महाराजने किया । वे मारवाड़ रियासतके बाजोलिया ग्रामके रहनेवाले थे । उनकी दीक्षा सं० १८६६ में महाराज श्री हेमराजजी के हाथसे हुई थी। वे विवाहित थे और स्त्रीको परित्याग कर उन्होंने दीक्षा ली थी। दीक्षाके बाद पहिले छह वर्षोंमें तो वे बीच बीचमें उपवास किया करते थे । परन्तु