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( १४ ) था। उनकी दीक्षा भी बाल्य-कालमें ही लाडनूमें हुई थी। जयपुरमें वे आचार्य पद पर आसीन हुए थे। उनके पिताका नाम पूरणमलजी बेगवाणी और माताका नाम वन्नांजी था। उनका देहान्त ५३ वर्षकी अवस्थामें चैत वदी ५ सं० १६४६ में सरदारशहरमें हुआ। उन्होंने ३६ साधू और ८३ साध्वियोंको प्रवर्जित किया। आपने अपने पट्टलायक स्वामीजी श्रीमाणकलालजीको निर्वाचित किया था।
षष्ठ आचार्यछठे आचार्य श्री श्री १००८ श्री श्री मानिकलालजी स्वामीका जन्म जयपुरमें सं० १६१२ की भादवा बदी ४ को हुआ था। उनकी दीक्षा लाडनु में छोटी उम्रमें ही हुई थी और वे सरदारशहरमें आचार्य बनाये गये थे। उनकी माताका नाम छोटांजी और पिताका नाम हुक्मचन्दजी थरड़ श्रीमाल था। उन्होंने केवल १६ साधू और २४ साध्वियों को ही दिक्षा दी थी। उनका देहावसान ४२ वर्षकी अपेक्षाकृत कम अवस्थामें ही हो गया था। उनका देहावसान सं० १९५४ की कातिक बदी ३ को सुजानगढ़में हुआ था। आप कोई पाटवी नहीं चुन गये थे इसलिये प्रायः २॥ महीना तकं आचार्य पद पर कोई भी न रहे ! चोमासेके बाद सब साधु एकत्रित हो लाडनु में स्वामीजी डालचन्दजीको आचार्य पदवी दी।
सप्तम आचार्यसातवें आचार्य श्री श्री १००८ श्री श्री डालचन्दजी स्वामीका जन्म उज्जैन (मालवा ) में मिती अषाढ़ सुदी ४ सं० १६०६ को हुआ था। इनकी दीक्षा भी बाल्यावस्थामें इन्दौर में हुई थी तथा लाडनूमें वे आचार्य पद पर अवस्थित हुए थे। उनके पिताका नाम कानीरामजी पीपाड़ा और माताका नाम जड़ावांजी था । इनका देहावसान ५७ वर्षकी अवस्थामें सं० १९६६ के भाद्र मासमें लाडनूमें हुआ। उन्होंने ३६ साधु और १२५ साध्वियां दीक्षित की।