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________________ [ ६० ] अध्याय प्रधान विषय पृष्शङ्क अत्यन्त आतुरों को भी छूट (२१२-२६७)। प्रस्तास्त शुद्ध होने पर सकामी व निष्कामीजन के लिये भोजन का विधान (२६८-३००)। मातापितृभ्यां पितुःदानं ग्रहणश्च २६८१ अमिहोत्र वर्णन (३०१)। दत्तपुत्र वर्णन (३०२) । माता-पिता द्वारा देने और लेने का विधान (३०३३१३) । पुत्र संग्रह अवश्य करना चाहिये (३१४-३१५)। अपुत्र की कहीं गति नहीं ( ३१६ )। पुत्रवान् की महत्ता का वर्णन ( ३१७-३२३)। पुत्र उत्पन्न होनेपर उसका मुख देखना धर्म है (३२४-३२६)। वृत्तिदत्तादि पुत्रों का वर्णन (३२७-३३५)। सगोत्रों में न मिले तो अन्य सजातियों में से पुत्र को ले अथवा सवर्ण में ले (३३६-३३७ ) । असगोत्र स्वीकृति में निषेध ( ३३८३४२ )। विवाह में दो गोत्रों को छोड़ने का विधान (३४३-३४४)। अभिवन्दनादि में दो गोत्र का वर्णन (३४५-३४६)। गोत्र और ऋषियों का विचार (३४७३५१)। दत्तजादि का पूर्व गोत्र (३५२-३५८ )। भ्रातृपुत्रादिपरिग्रहवर्णनम् २६८७ भ्राता के पुत्र को लेने में विवाह और होमादि की क्रिया नहीं केवल वाणीमात्र से ही पुत्र संज्ञा कही है
SR No.032671
Book TitleSmruti Sandarbh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages768
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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