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________________ पृष्ठाङ्क [ ४० ] अध्याय प्रधान विषय में "इदं हेयमिदं हेयमुपादेयमिदं परम्” यही बतलाया है। साक्षात्परब्रह्म देवकी पुत्र श्री कृष्ण की आराधना सर्वोत्तम है। देव, मनुष्य और पशु आदि का विस्तार उन्ही से है। साक्षाद्ब्रह्म परं धाम सर्वकारणमव्ययम् । देवकीपुत्र एवान्ये सर्वे तत्कार्यकारिणः ।। देवा मनुष्याः पशवो मृगपक्षिसरीसृपाः। सर्वमेतज्जगद्धातुर्वासुदेवस्य विस्तृतिः॥ ज्ञान एवं कर्म से भगवान् की ही आराधना सर्वोत्तम है । वही ज्ञान है, वही सत्कर्म है एवं वही सच्छास्त्र है। जो भगवान् के चरणारविन्दों की सेवा नहीं करते हैं वे शोचनीय हैं (४०-५६)। सात्विकराजसतामसगुणानां वर्णनम् २७६६ प्रकृति त्रिगुणात्मिका है एवं जगत् की कारणभूता है । सम्पूर्ण संसार देव, असुर और मनुष्य इसी के विकार हैं। इस प्रकार सात्त्विक राजस और तामस गुणों का संक्षेप से वर्णन ( ६०-७०)। देश शुद्धि का वर्णन-जहाँ म्लेच्छ पाषण्डी न होधार्मिक तथा भगवद्भक्तिपरायण मनुष्य रहते हों और हिंसक जन्तुओं से शून्य हो वह स्थान शुद्ध है (७१-८२१) .
SR No.032671
Book TitleSmruti Sandarbh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages768
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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