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________________ अध्याय [ १५ ] प्रधान विषय पृष्ठाङ्क ऊर्ध्व लोक में अनन्त सुख की प्राप्ति के लिये है (१९३-१६४)। दर्श में सूखे कपड़े पहनकर तिलोदक जल के बाहर दे,गीले वखों से पितर निराश होकर जले जाते हैं । ऊर्ध्व पुण्डू का माहात्म्य ( १६५-२०१)। श्राद्ध के बाद ब्राह्मण भोजन का विधान (२०२)। विवाह में, श्राद्धादि में नान्दी श्राद्ध करने से, सूतक का दोष नहीं रहता (२०३)। पितृ श्राद्ध में वर्जित लोगों को देवता कार्य में बुलाने की छूट (२०५-२०६)। पितृ श्राद्ध में वस्त्रों के देने का माहात्म्य (२०७)। अलग-अलग कमानेवाले पुत्रों द्वारा पृथक्-पृथक् पितृ श्राद्ध का विधान (२०८-२१०)। सन्यासी बहुत खानेवाला, वैद्य, नामधारी साधु, गर्भवाला, (जिसकी स्त्री गर्भवती हो ) वेदों के आचरण से हीन व्यक्ति को दान और श्राद्ध में न बुलावे (२११)। गर्भ करनेवाले द्विज के लिये वर्ण्य कर्म (२११-२१७)। सान, सन्ध्या, जप, होम, स्वाध्याय, पितृ तर्पण, देवताराधन और वैश्वदेव को न करनेवाला पतित होता है अतः इन्हें नियम से करना प्रत्येक द्विजाति का कर्तव्य है (२१८-२२४ )। . ॥ वाधूलस्मृति की विषय-सूची समाप्त ॥
SR No.032671
Book TitleSmruti Sandarbh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages768
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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