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________________ [ १३ ] अध्याय प्रधान विषय · पृष्ठाङ्क इसका वर्णन (१६५-१६८)। दूसरे के लिये तिल का हवन करनेवाले दूसरे के लिये मन्त्र जप करनेवाले और अपने माता पिता की सेवा न करनेवाले को देखते ही आंख बन्द कर ले (१६६)। जो लोग निन्द्य कर्म करते हैं उनके सङ्ग से सत्पुरुष भी हीन हो जाते हैं और उनकी शुद्धि आवश्यक है ( १७०-१७४ )। जो आदेश, तीन या चार वेद के महाविद्वान् दें वही धर्म है और कोई हजारों व्यक्ति चाहे, कहे वह धर्म सम्मत नहीं। वेद पाठी सदा पञ्चमहायज्ञ करनेवाले और अपनी इन्द्रियों को वश में करनेवाले मनुष्य तीन लोकों को तार देते हैं ( १७५-१७६)। पतित लोगों से सम्पर्क करने से मनुष्य एक वर्ष में पतित हो जाता है ( १८०)। कलियुग में सभी ब्रह्म का प्रतिपादन करेंगे परन्तु कोई भी वेद विहित कर्मों का अनुष्ठान नहीं करेगा ( १८१)। मैथुन में त्याज्य दिनों की गणना-षष्ठी अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, चतुर्दशी, दोनों पर्व अमावास्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति कोई भी श्राद्ध दिन, जन्म नक्षत्र का दिन, श्रवण व्रत का समय और जो भी विशेष महत्त्वपूर्ण दिन हैं उनमें मैथुन (स्त्री गमन ) निषिद्ध है (१८२-१८३) । शुभ समय में अर्थार्थी मनुष्य जिन कामों को अपने स्वार्थ के लिये
SR No.032671
Book TitleSmruti Sandarbh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages768
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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