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________________ पृष्ठाङ्क [ ११ । अध्याय प्रधान विषय उच्चारण करे (१३०-१३२)। देवार्चन, जप, होम, स्वाध्याय, स्नान, दान तथा ध्यान में तीन-तीन प्राणायाम करे (१३३-१३४ )। जप का विधान प्रातः काल हाथ ऊंचे रखकर, सायंकाल नीचे हाथ कर एवं मध्याह्न में हाथ और कन्धे के बीच में रखकर जप करे नीचे हाथ कर जप करना पैशाच, हाथ बीच में रखकर करने से राक्षस, हाथ बांधकर करने से गान्धर्व और ऊपर हाथ करने से दैवत जप होता है ( १३५-१३६ )। प्रदक्षिणा, प्रणाम, पूजा, हवन, जप और गुरु तथा देवता के दर्शन में गले में वस्त्र न लगावे ( १४०)। दर्भा के बिना सन्ध्या, जल के बिना दान और बिना संख्या किया हुआ जप सब निष्फल होता है । जप में तुलसी काष्ठ की माला और पद्माक्ष तथा रुद्राक्ष की माला प्रशस्त है ( १४१-१४३ )। गृहस्थ एवं ब्रह्मचारी १०८ वार मन्त्र का जाप करे। वानप्रस्थ तथा यति १००८ वार करें। आहुति के लिये सामग्री का विधान (१४४-४५)। गृहस्थधर्मवर्णनम् गृहस्थ को सम्पूर्ण कार्य पत्नी सहित इष्ट है । जिस मनुष्य की स्त्री दूर हो, पतित हो गई हो, रजस्वला हो, अनिष्ट वा प्रतिकूल हो उसकी अनुपस्थिति में कोई २६३७
SR No.032671
Book TitleSmruti Sandarbh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages768
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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