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प्रधान विषय
अभ्याय
१ ब्रह्मचारिप्रकरणवर्णनम् -
ମୃBE
१२३६..
चार वर्ण जिनके संस्कार गर्भाधान से अन्तिम दाह संस्कार तक होते हैं (१०) । संस्कारों के नाम तथा किस समय में कौनर संस्कार करने चाहिये (११-१५) । शौचाचार, ब्रह्मचारि के नियम, गुरु आचार्य की पूजा, वेदाध्ययन काल, गायत्री मन्त्र जप, नित्यकर्म, उपनयन काल की पराकाष्ठा, काल निकलने से प्रात्यता आ जाती है अर्थात् संस्कार हीन हो जाता है (१६-३६) । ब्रह्मचारी को यश, हवन, पितरों का तपण और नैष्ठिक ब्रह्मचारी को आजीवन गुरु के पास रहने का विधान (४०-५१) ।
१. विवाहप्रकरणवर्णनम् -
१२४०
ब्रह्मचर्य के बाद विवाह करने की आज्ञा और कन्या तथा वर के लक्षण (५२-५६) । ब्राह्म, आर्ष देव, धर्म, राक्षस, पैशाच, आसुर और गान्धर्व आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन । कन्या के देनेवाले पिता पितामह भ्राता और माता न हो तो कन्या का स्वयंबर करने का अधिकार है । जो मनुष्य कन्या के दोषों को छिपा कर विवाह