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[५० ] अन्याय प्रधानविषय
पृष्ठाक १ प्रतोपवासविधि वर्णनम्।
८६२ चान्द्रायण व्रत, जैसे शुक्लपक्ष में एक प्रास की वृद्धि और कृष्णपक्ष में एक-एक ग्रास का ह्रास इसको ऐन्दव व्रत कहते हैं। इस प्रकार विभिन्न चान्द्रायण व्रत कहे गये हैं। जैसे शिशु चान्द्रायण
और यति चान्द्रायण आदि (१-८) । कृच्छू व्रत, तप्त इच्छ, सांतपन, महासांतपन, प्राजापत्यकृच्छु, पशुकच्छ, पर्णकृच्छ, दिव्य सांतपन, पादकच्छ, अति कृच्छू, कृच्छ्रातिकृच्छू और परातिवृत सौम्य इच्छू (६-२१)। ब्रह्मकूर्च का विधान, पंचगव्य बनाने का मंत्र और उनकी विधि बताई गई है ( २२-३२ )। ब्रह्मकूर्व के माहात्म्य का वर्णन है (३३-३५)। उपवास व्रत से पापों की शुद्धि और जितने चान्द्रायण व्रत वर्णन किये गये हैं इनको मनुष्य स्वेच्छा से भी करे तो जन्मजन्मान्तर के पाप दूर होकर आत्मशुद्धि होती
है (३६-४३)। १० सर्वदान विधि वर्णनम् ।
व्यास तथा वशिष्ठजी ने जो दान विधि बताई है रसका फल (१-२)। दान का माहात्म्य और