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अध्याय
बैसा ही उसका मन होता है । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रादि वर्ण के अन्न की शुद्ध अशुद्ध की सूचि बताई है। जिनसे भिक्षा नहीं लेनी है उनका भी निर्देश है (३०६-३१२) । रजस्वला स्त्री से छुआ हुआ अन्न, कुत्ते और कौवे के जूठे अन्न तथा जो अन्न अग्राह्य है उनका विवरण दिया है ( ३१३-३१६ ) । जो अन्न अभोज्य होने पर भी ग्राह्य है उसको विशेष रूप से कहा गया है ( ३१७ ) ।
६ अभक्ष्य वर्णनम् ।
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प्रधान विषय
६ शुद्धि वर्णनम् ।
जिन शाकों को नहीं खाना चाहिये उनके नाम बताये हैं ( ३२०-३२२ ) । अति संकट पर अर्थात् प्राण जाने पर जो अभक्ष्य है उनका वर्णन आया है ( ३२३ - ३२४ ) । जो गृहस्थी मांस नहीं खाता है उसको स्वर्ग लोक की प्राप्ति बताई गई है। जहां पर मांस खाने का नियम बताया भी है उसकी निवृत्ति – उसको न खाने से महाफल बताया है ( ३२५-३३१ ) ।
शुद्धि का विधान और कौन २ वस्तु शुद्ध होती है
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