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________________ [ १६ ] अभ्याय प्रधानविषय आदि ऋषि पराशरजी के पास गये (१-२०)। पराशरजी ने कहा कि वेद और धर्मशास्त्र इन दोनों का कर्ता कोई नहीं है। ब्रह्माजी को जिस प्रकार वेदों का स्मरण हुआ था उसी प्रकार युग-प्रति-युग में मनुजी को धर्मस्मृतियों का स्मरण हुआ। पराशरजी ने कलियुग की विप्लव दशा में खेद प्रगट किया कि धर्म दम्भ के लिये, तपस्या पाखण्ड के लिये एवं बड़े-बड़े प्रवचन लोगों की प्रवंचना ( ठगी) के लिये किये जाते हैं। गायों का दूध कम हो जाता है, कृषि में उर्वरा शक्ति कम हो जाती है, स्त्रियों के साथ केवलमात्र रति की कामना से सहवास करते हैं न कि पुत्रोत्पत्ति के लिये। पुरुष त्रियों के वशीभूत होते हैं। राजाओं को वंचक अपने वश में कर लेते हैं। धर्म का स्थान पाप ले लेता है। शूद्र ब्राह्मणों का आचार पालते हैं तथा ब्राह्मण शूद्रवत् आचरण करने लगते हैं। धनी लोग अन्याय मार्ग पर चलते हैं। इस प्रकार कलियुग की विषमता पर अत्यन्त खेद प्रगट किया है (२१-३५)। १ धर्मविषयवर्णनम् । ७८६ इसमें आचार वर्णन दिखाया और युगों का नाम बताया
SR No.032668
Book TitleSmruti Sandarbh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages696
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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