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अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क २ "षट्कर्म निरतो विप्रः कृषिकर्माणि कारयेत्(२)। ६३१
हलमष्टगवं धर्म्य षड्गवं मध्यमं स्मृतम् ॥ चतुर्गवं नृशंसानां द्विगवं वृषघातिनाम् (३)। क्षुधितं तृवितं श्रान्तं बलीवदं न योजयेत् ॥ हीनाङ्ग व्याधितं क्लीबं वृषं विप्रो न वाहयेत् (४)। स्थिराग नीरुजं दृप्तं वृषभं षण्डवर्जितम् ॥
वाहयेदिवसस्या पश्चात् स्नानं समाचरेत्" (५) । षट्कर्म सम्पन्न विप्र को कृषि कर्म में जुटजाने का आदेश है, किस प्रकार भूमि में हल से जुताई करे, कितने बैलों से हल जोते तथा बैलों को हृष्टपुष्ट बनाना उसका धर्मकार्य
और कितने समय तक बैलों को खेती पर जोते जाय इसका नियम। कृषि कर्म को पराशर ने सब से प्रथम द्विजाति मात्र अर्थात् मनुष्य मात्र के लिये प्रधान कर्म बताया है और कृषिकार सब पापों से छूट जाते हैं (१२)। चतुर्वर्ण का कृषि कर्म धर्म बतलाया है (१७)। ३ अशौच व्यवस्था वर्णनम् ।
अशौच का प्रकरण-ब्राह्मण मृतसूतक में ३ दिन में, क्षत्रिय १२ दिन में, वैश्य १५ दिन में और शूद्र १ मास