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[ ४४ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क १२ उदकपरीक्षावर्णनम्
४३० उदक [जल में परीक्षा] वहां पर एक आदमी धनुष से एक तीर पानी में डाले। वह आदमी कूदकर उस तीर को लावे। जो पानी के नीचे न दिखलाई देवे वह शुद्ध, जो दिखाई दे वह अशुद्ध और मन्त्र वहीं लिखे हैं। १३ विषपरीक्षा वर्णनम्
४३१ विष की परीक्षा-हिमालय के विष को सात जौ के बराबर घी में भिगो कर उसे दिखलावे। जिस पर जहर न चढ़े
उसे शुद्ध। इसके प्रकरण में प्रार्थना के मन्त्र लिखे हैं। १४ कोषप्रकरण वर्णनम्
४३१ कोषमान-किसी उप देवता के स्नान का उदक दीन अब्जुली वह पीवे। दो तीन सप्ताह तक उसके घर में कोई रोग, मरण हो जाय तो उसे अशुद्ध समझे। इसके प्रकरण में प्रार्थना के मन्त्र लिखे हैं। १५ द्वादश पुत्र वणनम्
४३२ बारह प्रकार के पुत्र-सबसे पहिले औरस, क्षेत्रज, पुत्रिका पुत्र, भाई और पिता के न होने पर लड़की, पुनर्भव, कानीन,