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________________ ( २ ) "तप्तभटो बापनागस्ततः कर्णाट गोत्रजः । तूय बलाभ्यो नाभाऽपि श्री श्रीमाल पञ्चमस्तथा । १६६ कुलभद्रो मोरिषश्च विरिहिद्याह्नयोऽष्टमः ॥। श्रेष्ट गौत्राण्यमून्यासन, पक्षे दक्षिण संज्ञके ॥ १७० सुन्चितिताऽदित्यनागौ, भूरि भाद्रोऽय चिचटि कुमट कन्याकुब्जोऽथ, डिड्रभाख्येष्टमोऽपिच ॥ १७१ ॥ तथाऽन्यः श्र ेष्टिगौत्रीय, महावीरस्य वामतः नव तिष्ठन्ति गोत्राणि, पञ्चामृत महोत्सवे ।। १७२ (१) तप्तभट ( तातेड़) (२) बाप्पनाग (वाफना † ) (३) कर्णाट (करणावट) (४) बलाह ( रांका बांका सेठ) (५) श्रीश्रीमाल, (६) कुलभद्र (सूरा) (७) मोरख (पोकरणा ) (८) विरहट ( भूरंट) (९) श्रेष्टि (वैद्य मेहता) एवं नव गोत्र वाले स्नात्रीय प्रभु प्रतिमा के दक्षिण - जीमण तरफ पुजापा का सामान लिये खड़े थे । (१) सूचिति (संचेती) (२) आदित्यनाग (चोरड़िया 7 ) (३) भूरि (भटेवरा ) (४) भाद्रो (समदड़िया) (५) चिचट (देसरड़ा ) (६) कुमट (७) कन्या कुब्ज (कनोजिया) (८) डिडू (कोचर मेहता) (९) लघु श्रेष्ट (वर्धमाना) एवं नव स्नात्रीय पञ्चामृत लिए महाबीर मूर्ति के वाम डावे पासें खड़े थे । यह कथन केवल उपकेशपुर के महाजन संघ का ही है ''नाहटा, जांघड़ा, वैताला, पटवा, बलिया, दफ्तरी वगैरह । +गुलेच्छा, पारख, गदइया, सावसुखा, बुचा नाबरिया चौधरी दफ्तरी वगैरह भी आदित्यनाग गौत्र की शाखाएं हैं।
SR No.032656
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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