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भूषित किया गया था । और आज भी यदि इन पूर्वोक्त पदवियो का कहीं अस्तित्व शेष है तो इस महाजन संघ में ही है । यह महाजन संघ का भूतकालीन महत्व बतला रहा है या पतन ?
पर प्रकृति का एक यह भी अटल नियम है कि संसार में सदा एक सी स्थिति किसी की न तो रही और न रहती है । यही नियम महाजनों के लिये भी समझ लीजिये । फिर उन महान उपकारी पूर्वाचार्यों पर यह दोष लगाना कि उन्होंने महाजन संघ बना कर बुरा किया, यह सरासर अन्याय और अज्ञानता का दिगदर्शन नहीं तो और क्या है ?
"यदि आचार्य रत्नप्रभसूरि ने ही "महाजन संघ" की स्थापना की थी तो इसका गच्छ भी एक ही होना चाहिए था परन्तु आज तो हम एक-एक जाति के भी जुड़े २ अनेकों गच्छ देखते हैं । जैसे एक ग्राम में एक जाति अमुक गच्छ की उपासक है तो दूसरे ग्राम में वही जाति किसी अन्य गच्छ की उपासक तथा तीसरे ग्राम में फिर वही जाति तीसरे गच्छ की उपासक पाई जाती है, ऐसा क्यों ?"
भारत
यह बात तो हम ऊपर लिख आये हैं कि भगवान् महावीर की सन्तान पूर्व भारत में विहार करती थी और उनका गच्छ उस वक्त सौधर्म गच्छ था, तथा प्रभु पार्श्वनाथ की सन्तान पश्चिम में एवं राजपूताना और मरुधर आदि प्रदेशों में भ्रमण कर अजैनों की शुद्धि कर नये जैन बना एवं जैन धर्म का प्रचार करने संलग्न थी और उनका गच्छ उपकेश गच्छ था । उपकेशगच्छ का यह कार्य १०० वर्ष तक तो बड़े ही वेग से चलता रहा, यहाँ तक कि मरुधर के अतिरिक्त सिंध, कच्छ, सौरठ, अवंती, मेद
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