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( २३ ) गए जैसे कि आज जैनों के यहाँ सब संस्कार विधर्मियों के विधि विधान से ही होते हैं, तथा जैनों के घरों में व्रत, व्रतोलिया, पर्व, त्यौहार वगैरा सब के सब विधर्मियों के ही होते हैं । यह सब क्रिया उद्धारकों की कर कृपा का ही फल है।
क्रिया-उद्धार वही कर सकता है, जिसमें बिगड़ी को सुधारने की योग्यता हो । जैसे भगवान् महावीर ने क्रिया उद्धार किया उन्होंने चतुर्विध संघ की स्थापना की। यद्यपि उनके पूर्व प्रमु पार्श्वनाथ के हजारों सन्तानिये विद्यमान थे और वे पार्श्वनाथ के शासन की क्रिया करते थे, पर भगवान महावीर ने उन से कई कठिन नये नियम बना कर भी एक शब्द ऐसा उच्चारण नहीं किया कि जिससे पार्श्वनाथ के सन्तानियों का अपमान हो या उनके दिल को किसी प्रकार की चोट पहुँचे । इस उदारता का फल यह हुआ कि बिना किसी विवाद के पार्श्वनाथ के सन्तानिये एक के पीछे एक अर्थात सब के सब महावीर शासन में आ कर उनकी क्रिया को करने लग गये और वे उभय समुदाय एक हो कर शासन की श्रीवृद्धि करने लगे।
चैत्यवासियों के समय जो संगठन था उसके टुकड़े २ कर समाज में भेद डालने वाले जितने क्रिया उद्धारक हुए, उनमें एक में भी ऐसी शक्ति नहीं थी कि वे उस समय की बिगड़ी दशा का सुधार करते या चैत्यवासियों को समझा बुझा कर उनको साथ में ले कर क्रिया उद्धार करते। या किसी अन्य धर्मियों के साथ वादविवाद करके उन अजैनों को जैन बनाते, पर इतनी तो योग्यता ही कहां थी ? इन्होंने तो शासन का जो कुछ मसाला जैसे"आगम या परम्परा के गूढ़ रहस्य, कल्प, मंत्र, तंत्र, यंत्र, आदि