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२-आचार्य श्री हरिदत्त सूरीश्वर हरिदत्त गत दृषण सभी, तृतीय पट्ट पर सूरि हुए।
विनाशक वे अज्ञान के , ज्ञानोद्योत के कर्ता हुए। सहस्त्र शिष्य सह लोहित्य को, दीक्षित किया स्वधर्म में।
जैन बनाये लाखों को, फिर स्थिर किये षट्कर्म में ॥३॥
३-प्राचार्य श्री आर्य समुद्र मूरीश्वर आर्य समुद्र थे शान के, फिर दान सूरि ने दिया।
प्रावन्ती उद्यान में जा, समवसरण जिसने किया। राट रानी कुंवर केशी, वे दीक्षित हुए वैराग्य से। डंका बजाया सत्धर्म का, प्रशस्त शासन राग से ॥४॥
४-प्राचार्य श्री केशिश्रमण सूरीश्वर प्राचार्य :वर श्रमण केशि, तुर्य पट्ट सरदार थे। . अखण्ड थे ब्रती ब्रह्मचारी, तप तेज के नहीं पार थे। प्रदेश्यादि नृप बारह, और असंख्य नरनार थे ।
जैन बनाये उन सभी को, जिनका बड़ा उपकार थे ॥५॥
___ भगवान वीर प्रभु का शासन भूप सिद्धार्थ मात त्रिसला, क्षत्री कुण्ड वर स्थान था।
अवतार लिया श्री वीरप्रभु ने, तपधारी केवल ज्ञान था ॥ संध चतुर्विध करी स्थापना, अहिंसा झंडा फहराये थे।
पार्श्वनाथ के थे सन्तानिय, वीर शासन में आये थे ॥६