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________________ ( ६७ ) १०- कुछ ब्राह्मण भी जैनधर्म में दीक्षित हुये और गणधर तथा गणाधिप 'उनमें से प्रसिद्ध हैं । १२- महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात् उसके शिष्यों ने तीर्थंकरों की मूर्तियाँ स्थापित कीं और लोगों में मूर्त्तिपूजा का प्रचार किया, जिससे उनका धर्म अधिक से अधिक फैले । १३- वह ( दिगम्बर साधु ) भिक्षा लेते समम वस्त्र को परे हटा लेते हैं और खाते समय पर रख देते हैं । वह रंगदार वस्त्र पहनते हैं, बुद्ध को मानते हैं, अरिहन्त को नहीं मानते । १३-स्थानकवासी लोग अपने गुरुओं और उनकी पूजाको निरर्थक समझते हैं । इत्यादि ।" हमें संतोष है कि हमारे पूजनीय विद्वद्वर्य विद्यावारिधि श्री चम्पतराय जी, बार-एट-ला हर दोई ने इस ओर ध्यान दिया उन्होने प्रकाशकों को बाध्य किया कि वह इस भई लेख को निकाल कर जैन सिद्धान्तानुसार लेख दरज करें। पुस्तक का दूसरो संस्करण प्रकाशित होचुका है और अब श्री चम्पतराय जी का लेख पुस्तक की शोभा को बढ़ा रहा है । प्रकाशकों ने भी उनके प्रति कृतज्ञता प्रगट को ही । हम भी इसके लिये पैरिस्टर साहिब को हार्दिक धन्यवाद देते हैं। लेख बहुत लम्बा है इस लिये यहाँ उद्धृत नहीं किया गया। देखने की इच्छा वाले सज्जन उस पुस्तक के पृष्ट ११८ से १३२ तक देख सकते हैं। चित्र बिल्कुल निकाल दिया गया है ।
SR No.032644
Book TitleBharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagmalla Jain
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year1928
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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