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________________ (६६) १-जैनों का मन्तव्य है कि उनके धर्म के मूल प्रवर्तक श्रीऋषभदेव (आदिनाथ ) थे जो आदि पुरुष मनु के वंशज थे। परन्तु पार्यों की धार्मिक पुस्तकों में इस प्रकार का कोई उल्लेख नहीं है। २-यदि हम यह भी मानले कि आदिनाथ मूलप्रवर्तक थे तो हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि प्राचीन वैदिककाल के आर्य बड़े बुद्धिमान थे, जो उन्हों ने इस धर्म को महावीर के समय तक सिर उठाने नहीं दिया । __३-जैन लोग कहते हैं कि वेदों की मूल पुस्तके इन वेदों से जो आजकल प्राप्त हैं, वहुत भिन्न थीं। आजकल के वेदों में हिंसा पाई जाती है। ४-वास्तव में जैनधर्म अरिहंत का चलाया हुआ है। ५-अरहन्न ने प्रचार किया । ६-उसने (अरिहंत ने) बहुतसी धार्मिक पुस्तकें लिखीं और जहां तहां मठ स्थापित किये जिससे लोग इस धर्म से संलग्न रहें। ___७-अरिहन्त १५६७ ई० पू० संवत् में निर्वाण(मुक्ति) को प्राप्त हुये और उनके पश्चात् २१ तीर्थंकर हुये। ____-महावीर का बौद्धधर्म के प्राचार्य से शास्त्रार्थ हुआ और उनको जीतने के बाद उसने इस धर्म में नई जान डाल दी। 8-उसने ( महावीर ने ) मोकार मंत्रको वैसे का वैसा रनेदिया । परन्तु इसके साथ ही इसो से मिलता जुलता नमस्कार मंत्र चलाया।
SR No.032644
Book TitleBharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagmalla Jain
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year1928
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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