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________________ (२४) हाईरोक्स--पुस्तक के प्रकाशकों ने भी हमारे पत्र के उत्तर में एक लम्बा चौड़ा पत्र (देखो परिशिष्ट नं० २) छापकर उन्हीं लोगों तक पहुंचाया जहां कि हमारा पत्र गया था। इस पत्र में उन्होंने हम पर यह दोष लगाया कि हमने यह काम जल्दी में और किसी स्वार्थी की कुप्रेरणाले उनको हानि पहुंचाने के भाव से किया है। हम उनको विश्वास दिलाना चाहते हैं कि इसमें ऐसी कोई बात नहीं थी। __ १२ तार्थंकरों वाली बात को तो वह अपने इस उत्तर में छोड़ हो गये हैं। परन्तु हां बाकी बातों के विषय में उन्हों ने अपने पहले ही लेख की पुष्टि करने का प्रयत्न किया है। वह कहते हैं कि जैनसिद्धान्त चाहे कुछ ही क्यों न हो उनको तो केवल उन्हीं बातों से प्रोजन है जो इतिहास की कसौटी पर परखी जा चुकी हैं ? उन्हों ने श्री जोगिन्द्रलाल ( जगमन्दिर लाल ) जी की Outlines of Jainism का भी आश्रय लेना चाहा है। उत्तर देने को तो इसका भी दिया जा सकता था परन्तु हमारे कई एक मित्रों यथा श्री चम्पतराय जी तथा ला० श्यामचन्द्रजी बी० एस सी०, पी० ई० एस०, हैडमास्टर गवर्नमेंट हाईस्कूल जालन्धर शहर ने हमें यह सुसम्मति दी कि वहस को न बढ़ाकर प्रकाशको से मिलकर निपटारा कर लिया जावे । यदि वे इस लेखको जैन सिद्धान्तानुसार शुद्ध करदें तो फिर किसी प्रकार के आन्दोलन की आवश्यकता
SR No.032644
Book TitleBharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagmalla Jain
PublisherShree Sangh Patna
Publication Year1928
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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