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॥ श्री: ॥
वक्तव्य उस परमाराध्य , अपने इष्टदेवजीकी कृपासे मैं आज आप महानुभावोंके सन्मुख , पाटलिपुत्र “पटनेका इतिहास" नामकी. एक छोटी परमोपयोगी पुस्तक लेकर उपस्थित हुआ है।
____ सर्वसाधारण जानते हैं, कि
प्रयोजनमनुदिश्य पामरो पिन प्रबर्तते ___ कोई भी मनुष्य किसी न किसी प्रोयजनको लेकर ही . किसी कामको. करने के लिये प्रस्तुत होता है, योंही नहीं इस पुस्तकके लिखने का मुख्य प्रयोजन यही है, कि वर्तमान पटना नगर जो किमी, दिन जैन श्रावक समुदायसे प्रति पूर्ण भरा हुआ था।मान समयके फेरसे वहां जैनियोंकी संख्या बहुत ही कम है। तो भी जैनियोंके प्राचीन कीर्तिस्तम्भ अनेक श्री जिनमन्दिर अबभी जैनियोंके अस्तित्वको सूचित कर रहे हैं। उनमें भी मन्दिर जीर्ण हो जानेके कारण गिरने योग्य हैं। उनका जीर्णोधार करनेका विचार पटनेके जैन संघने किया है। किन्तु यह काम बहुत बड़ा है जबतक सम्पूर्ण जैन भ्रातृ वर्ग इस कार्यमें योग दान न देगें केवल पटना निवासी जैन भाइयोंसे होना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। अतएव उक्त संघने पटनेका संक्षिप्त इति. हाम लिखने के लिये मुझे वाध्य किया कारण कि
विनजाने नही होही प्रीति प्रीति बिना नहीं होही प्रतीती