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यह सगर्व कहना पड़ेगा कि अयोध्या अनेक आविष्कारों की भूमि है। यदि चक्रवर्ती सम्राट् सवसे पहिले प्रादुर्भाव अयोध्या में होता है तो भारत के लिये नवीननियमों का निर्माण भी सर्वप्रथम वहीं होता है। कुरुक्षेत्रके मैदान में समुत्पन्न और ब्रह्मावर्तमें प्रकटित वेदोंका सबसे उत्तम अर्थ अयोध्यामे ही होकर संस्कृतका राष्ट्रभाषात्व निखिल भूमण्ड र मे घोषित करताहै । अयोध्या यदि मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामचन्द्र जी के उत्पन्न करने का गर्व करती है तो जैन-सम्प्रदाय के प्रथमप्रवर्तक ऋषभदेव, पार्श्वनाथ आदिकी जन्मभूमि भी यही है । अयोध्या यदि बुद्धकी तपस्थलो बन कर लगभग चार हजार भिक्षुओं का वौद्धविश्वविद्यालय रखती है तो मक्काखुर्द वनकर इस्लामधर्मको भारत में प्रधानपीठ वननेका अनल्प अभिमान उस में भरा है अयोध्या संसार की सव वातों में अनुपम और श्रेष्ठपुरी है।
जैनधर्म अयोध्या से उत्पन्न होकर सारे भारत में फैला समय के परिवर्तन से आज अयोध्या का सच्चा इतिहास लुप्त है। यदि कम से कम अयोध्या से सम्बन्ध रखने वाले तत् तत् सम्प्रदायानुयायी इस पुस्तक के लेखक पं० ज्येष्ठाराम जी का अनुगमन करें तो उनके इतिहास की स्पष्टता के साथ प्रयोध्या के इतिहास का भी खुलासा बटन कुछ भारतीयों के