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( १० ) वस्त्रादि वितरण कर पतुल पुन्य के भागी बनते हैं। इस मेले के प्रसंग पर घासपास के गांव के अतिरिक्त दूर के कुष्टादि रोग पीड़ित, चक्षु विहीन. एवं पङ्गु पादि नाना प्रकार रोग ग्रसित हजारों की संख्या में उपस्थित होते हैं जिनको विश्राम करने के लिये एक भी स्थान न होने के कारण लेखक को स्वर्गीया पत्नी श्रीमती कुन्दन कुमारी को स्मृति में एक "दोनशाला" बनवाई गई है, जिसको उद्घाटन क्रिया कुछ वर्ष हुए आगरा निवासी देशभक्त श्रीयुत चांदमलजी वकील के करकमलों से सम्पादित हुई थी। आजकल इसी दौनशाला में पटना डिस्ट्रिकबोर्ड की तरफ से एक आयुर्वेद चिकित्सालय भी खोला गया है जहां से रोगी लोग बिना मूल्य बराबर लाभ उठाते हैं। इस निर्वाणोत्सव पर कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को बड़े धूमधाम से रथोत्सव-वरघोड़ा भी निकलता है।
- मैंने पाठकों को सेवा में तीर्थ श्री पावापुरीजी का संक्षिप्त इतिहास उपस्थित किया है। अब यहां ऐतिहासिक दृष्टि से कुछ दिग्दर्शन करा कर इस प्रबन्ध को समाप्त करूंगा।
भारतवर्ष के अंग, बङ्ग, प्रान्त में हो जैनियों के कई प्रसिद्ध तीर्थ हैं। जिनमें श्री सम्मेतशिखर, चंपापुरी, राजगृह, पावापुरी पोर पाटलीपुत्र ( पटना ) आदि मुख्य हैं। जहांतक मुझे उपलब्ध हुआ है, इन समस्त स्थानों में विक्रमीय हादश शताब्दि के पूर्व की लेख सहित उल्लेख योग्य कोई वस्तु अद्यावधि दृष्टिगोचर नहीं हुई। कलिड्न देशमें भुवनेश्वर के समीप खण्डगिरि उदयगिरि के खारवेल राजा का लेख विशेष प्राचीन और विख्यात है। अङ्ग और बङ्ग देश में अद्यावधि जो कुछ लेख सहित मूर्ति मिले हैं उनमें राजगृह स्थित गांव मन्दिर के दूसरे मंजिले में श्री शान्तिनाथ भगवान् को संवत् १११० की मूर्ति के अतिरिक्त अन्य प्राचीन कोई मत्ति नहीं पाई गई । जलमंदिर स्थित सं० १२६० को प्रतिष्ठित धातु मति से भी प्राचीन और कोई मूत्तिः या लेख वहां नहीं है। श्री हेमचन्द्राचार्यजी के पश्चात् जिस समय भारतवर्ष पर मुसलमानों का प्रबल आक्रमण चल रहा था,