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( 6 ➤ हुआ है। यह पुल लगभग ६०० फौट लम्बा है । पहिले जब यह पुल बना हुआ न था उस समय यात्रौ लोग नाव में बैठ कर मन्दिर में पहुंचते थे । मन्दिर सरोवर के मध्य भाग में रहने के कारण उक्त पुल के अतिरिक्त चारों ओर जलाकीर्ण और कमलों से आच्छादित हैं, और वहां हजारों छोटे बड़े मत्स्य निर्भय हो स्वतन्त्रतापूर्वक फिरते हुए दिखाई देते हैं । पाठक इस दृश्य का परिचय यहां दिये गये चित्रों से अच्छी तरह पा सकते हैं ।
जलमंदिर में कोई शिखर बना हुआ नहीं है, तौभी केवल गुम्बज सहित यह मंदिर बहुत दूर तक दिखाई पड़ता है। मंदिर के भीतर कलकत्ता निवासो सेठ जीवनदासजी को सं० १६२८ को बनवाई हुई मकराणे को सुन्दर तीन वेदियां हैं। मध्यम वेदो में श्री वौर प्रभु को प्राचीन छोटी चरणपादुका विराजमान हैं । इस चरण पट्ट पर कोई लेख नहीं ज्ञात होता और चरण भी बहुत प्राचीन होने के कारण घिस गये हैं। इस वेदी पर श्री महावीर खामो को एक धातु को मूर्त्ति रखी हुई है जो सं० १२६० ज्येष्ठ शुक्ल २ को आचार्य श्री अभयदेवसूरिजी की प्रतिष्ठित है, और यह मूर्त्ति स्नानादि पूजा के समय उपयोग में लाई जाती है कारण कि जलमंदिर में चरणों के सिवाय और कोई मूर्ति नहीं है । दाहिनी वेद पर श्री महावीर प्रभु के प्रथम गणधर श्री गौतम स्वामी को, चोर बांयी पर पञ्चम गणधर श्री सुधर्म खामी की चरणपादुकायें विराजमान है, ये दोनों चरण संवत् १९३५ के प्रतिष्ठित हैं ।
मंदिर के बाहर दोनों तरफ दो क्षेत्रपाल हैं और नोचे को प्रथम प्रदक्षिणा में एक ओर ब्राह्मी, चन्दनादि सोलह सतियों का विशाल चरणपट्ट सं० १६३१ को और दूसरी ओर सं० १७३५ को प्रतिष्ठित श्री दौपविजयजी गणि को पादुका अवस्थित है। बाहर की प्रदक्षिणा में सं० १६५८ को प्रतिष्ठित श्री जिनकुशलसूरिजी कौ पादुका है। मन्दिर को उत्तर दिशा में सरोवर में उतरने के लिये सीढ़ियां बनी हुई हैं ।