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( १४ ) होता जा रहा है कि ईसा जब १३ साल के हुए और घर वालों ने उनकी शादी की सलाह करना शुरु की, तो वह घर छोड़ कर कुछ सौदागरों केसाथ सिन्धके रास्ते हिन्दुस्तान में चले आये वह जन्म से ही बड़े विचारक और सत्य के खोजी थे और दुनियाके भोग-विलासोंसे उदासीन थे। यहां आकर वे बहुत दिनों तक जैनश्रमणों के साथ भी रहते रहे, बौद्ध भिक्षोंके साथ भी रहते रहे, फिर वे नैपाल और हिमालय होते हुए ईरान चले गये और वहां से अपने देशमें जाकर उन्होंने अहिंसा और विश्वप्रेम प्रचार शुरू कर दिया । प्रभु ईसाने अपने आचार-विचार के मूल तत्वोंकी शिक्षा श्रमणों से पाई थी, इस बात से भी सिद्ध है कि उन्होंने अपने उपदेशो में जिन तीन विलक्षण सिद्धान्तों पर जोर दिया है वे देवताप्रधान यहूदी संस्कृतिस सम्बन्ध नहीं रखते, वे तो भारत की श्रमण संस्कृतिके हीमूल आधार हैं। वे हैं
आत्मा और परमात्मा की एकता, आत्माका अमरत्व, आत्मका दिव्यजीवन । ईसा सदा अपनेको ईश्वरका बेटा कहा करते थे । जब आदमी उन से पूछते कि ईश्वर कहां है तो अपनी ओर 1. Bible ST. John. 5-18. 2. , , 8-19. 3,
10-30. "He that hath seen me hath seen the father, Believeth those not that I am in the father and the Father in me' ? 14-8.10. ("1 and my Father are one") 4. Bible-St. John. 8-56.59.
(Verilv, verily. I say unto you, before Abraham 5. Bible St. John. 10-25.
"I am the resurrection and the life, he that believeth in me though, he were dead, yat shall he live''.