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________________ ( ३ ) दीक्षा दे दी और उसका नाम वल्लभ रख दिया। इससे पाया जाता है कि वल्लभ ने वैराग्य से दीक्षा नहीं ली पर केवल दाखें खजूरादि खाने पीने के लिये ही दीक्षा ली थी तथा उस लड़के को माता के भी एक छोटासा लड़के का मूल्य पाँच सौ द्रव्य हाथ लग गया। इस प्रकार मूल्य के शिष्यों से शासन को क्या २ नुकसान होता है वह आगे चल कर आप स्वयं पढ़लेंगे । जिस गुरुने वल्लभ को दीक्षा देकर पढ़ा लिखा कर थोड़ासा होशियार किया, बाद उसी गुरुसे क्लेश कर गुरु को छोड़ कर वल्लभ वहाँ से निकल गया । कहा है कि: CROSS जिणवल्लह कोहाओ कुच्चयरगणाओ खरयरया' (वृद्धसं० पट्टावली ) — जिनवल्लभ क्रोधादितिवचनेन जिनवल्लभो मूलोत्सूत्रप्ररूपको दर्शितः क्रोध शब्देन निजगुरुणा सह - कलहः सूचितः तेनायं निजगुरुणा चैत्यवासी जिनेश्वरेण सह कलहं कृत्वा निर्गतो न पुनर्वैराग्यरङ्गात् । प्रवचन पराक्षा पृष्ठ ३१४ मूल्य का खरीदा हुआ शिष्य इससे अधिक क्या कर सकता. है ? खैर, वल्लभ गुरू को छोड़ कर खरतरों के मतानुसार अभयदेवसूरि के पास आया । श्रभयदेवसूरि ने अपनी उदारवृत्ति से वल्लभ को थोड़ा बहुत आागनों का ज्ञान करवाया पर उस समय अभयदेवसूरि १ जिनवल्लभ ने कुर्च पुरा गच्छ को छोड़ कर अपना विधिमार्ग नामक ना मत निकाला । आगे चलकर उस विधिमार्ग का रूपान्तर नाम खरतर कहलाया । अतः पट्टावली कार का आशय खरतर शब्द से विधिमार्ग का ही समझना चाहिये ।
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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