SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४८ ) अब रहा दूसरा विकल्प वि. सं. १०८० का । यह भी कल्पना मात्र ही है कारण वि. सं० १८० में जिनेश्वरसूरि जावलीपुर में स्थित रह कर आचार्य हरिभद्रसूरि के अष्टकों पर वृत्ति रच रहे थे, ऐसा खुद जिनेश्वरसूरि ने ही लिखा है । तब दुर्लभ राजा का राज वि. सं० २०६६ से १०७८ तक रहा । X X खरतरों ने पाटण में दुर्लभ राजा का राज वि. सं० १०६६ से १००८ होने में कुछ शंका करके एक गुजराती पत्र का प्रमाण दिया है कि सं० १०७८ तक का कहना शंकाप्रद है इत्यादि । यह केवल भद्रिकों को भ्रम में डालने का जाल हैं। क्योंकि आज भच्छे २ विद्वानों एवं संशोaa द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि पाटण में राजा दुर्लभ का राज ठोक वि. सं० १०७८ तक ही रहा था, इसके लिए देखो - पं० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का लिखा सिरोही राज का इतिहास - आपने दुर्लभ का राज सं० १०७८ तक का लिखा है तथा गुर्जरवंश भूपावली में दुर्लभ का राज वि. सं० १०७८ तक ही रहा था बाद उसका पट्टधर भीम राजा हुआ । अब खरतरों को कुछ भान होने लगा तो उन्होंने दुर्लभ के स्थान में भीम लिखना शुरू किया है जैसे खरतर यति रामलालजी ने १०८० में दुर्लभ (भीम) और खरतर वीरपुत्र आनन्दसागरजी ने श्री कल्पसूत्र के हिंदी अनुवाद में भी वि. सं० १०८० में राजा दुर्लभ ( भीम ) ऐसा लिखा है । इससे यही सिद्ध होता है कि वि. सं० १०८० में पाटण में दुर्लभ का राज नहीं किंतु राजा भीम का राज था । पर इनके पूर्वजों ने १०८० राजा दुर्लभ का राज लिख दिया अतः उन्होंने दुर्लभ ( भीम ) अर्थात् दुर्लभ का अर्थ कोष्ठ में भीम कर दिया । इस कामतलब यही है कि सं० १०८० में राजा दुर्लभ का नहीं पर राजा भीम का हो राज था । अतः खरतरों के लेख से खरतरों की पट्टावलियां जिसमें जिनेश्वरसूरि के शास्त्रार्थ एवं खरतर विरुद का समय वि. सं० २०२४ तथा १०८० का ही लिखा है वह कल्पित एवं मिथ्या सावित होती है। अब इस विषय में दूसरे प्रमाणों की जरूरत ही नहीं है ।
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy