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________________ ( २७ ) सिवसासणस्स जिणसासनस्स सारखरे गहेऊणं । इअ आसीसा दिन्ना सूरीहिं सकज्जसिद्धिकए ॥ ९ ॥ 'अपाणि पादो झमनो ग्रहीता, पश्यत्य चक्षुः स शृणोत्य कर्णाः । स वेत्ति विश्वं नहि तस्य वेत्ता, शिवो ह्यरुपी स जिनोऽवताद्व ॥ १० ॥ तो विप्पो ते जंपइ चिठ्ठह गुट्ठी तुमेहिं सह होइ । तुम्ह पसाया वेअत्थपारगा हुति मे अ सुआ ॥ ११ ॥ 'ठाणाभावा अम्हे चिट्ठामो कत्थ इत्थ तुह नयरे ? | चेइअवासिअमुणिणो न दिंति सुविहिअजणे वसिउ ॥ १२ ॥ तेणवि सचंदसाला उवींर ठावित्तु सुद्ध असणेणं । पडिलाभि मज्झहे परिखिआ सव्वसत्थेषु ॥ १३ ॥ तत्तो चेsयवासी अमुडा तत्थागया भणति इमं । नीसरह नयरमज्झा चेइअबज्झा न इह ठंति ॥ १४ ॥ इअ वुतं सोउ रणो पुरओ पुरोहिओ भणइ । रायावि सयलचेइअवासीणं साहए पुरओ ।। १५ ।। जइ कोऽवि गुणड्ढाणं इमाण पुरओ विरूवयं भणिहि । तं निअरज्जाउ फुडं नासेमि सकिमियभसणुव्व ॥ १६ ॥ रण्णो आएसेणं वसहिँ लहिउ ठिआ चउम्मासिं । तत्तो सुविहिअमुणिणो विहरंति जहिच्छिअं तत्थ ॥ १७ ॥ " इत्यादि रुद्रपल्लीय संघतिलक सूरिकृत दर्शन सप्ततिका वृता " प्रवचन परीक्षा पृ० २८३
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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