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________________ ( ६ ) ३. कई खरतर शास्त्रार्थ का समय वर्द्धमान के स्वर्गवास के बाद का बतलाते हैं । ४. कई खरतर शास्त्रार्थ का समय आबू के मंदिरों की प्रतिष्ठा ( १०८८ ) के बाद का बतलाते हैं X ६ - जिनेश्वरसूरि को विरुद १. कई खरतर कहते हैं कि राजा ने खरतर विरुद दिया । २. कई कहते हैं कि विरुद तो 'खरा' दिया था पर बाद में खरतर हो गये । ३. कई कहते हैं कि खरा रहने वाले खरतर तब हार जाने वाले को कँवला कहा x ४. कई कहते हैं कि हारने वालों को कँवला नहीं पर जब राजा ने खरा कहा तब जिनेश्वरसूरि ने कहा कि हम कोमल हैं । * ४ साध्वाचार पत्राणि मुक्तानि तदानों गुरुभिरुक्तम x x X ख० ५० पृष्ठ २२ नोट- अर्वाचीन खरतरों ने यह बात केवल मनः कल्पना से घड़ निकाली है जो में आगे चलकर इसी लेख में साबित कर दूंगा । x शास्त्र के समय के लिये नं० १, २, ३, ४, के प्रमाण आहे चलकर इसी किताब में दिये गये हैं । अतः पाठक वहाँ से देखळें । ं दुर्लभ राज सभायां ८४ मठपतीन् जिल्ला प्राप्त खरतर विरुदः । ख० प० पृष्ठ १० 4. जिनेश्वरसूरि मुद्दिश्य 'अतिखराः ' - ख० प० पृष्ठ २२ + ततः खरतर विरुदं लब्धम् । तथा प्रापणात् 'कँवल ' भैस्थवासिनोहि पराजय - “ख० प०पृष्ठ २२" - * यूर्य 'खरतराः इति सत्यवादिनः । गुरुभिरुक्तमेते कोमलाः इति ।
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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