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________________ - ३--जिनेश्वरसूरि का शास्त्रार्थ किसके साथ हुआ १ कई खरतर कहते हैं कि शास्त्रार्थ सूराचार्य के साथ हुआ * २ कई कहते हैं कि शास्त्रार्थ कुर्चपुरागच्छवालों के साथ हुआs .. ३. कई कहते हैं कि उपकेशगन्छ वालों के साथ शास्त्रार्थ हुश्रा । * ॐ तत्र च जिनगृह निवास लम्पटाः चैत्यवासी सूराचार्योः भासन् x x x सूराचार्यैः वसतिवास प्रतिषेधकं जिनगृहवास समर्थक स्वकपोल कल्पित शास्त्र प्रमाणं दर्शितम् । . 'षट स्थान प्रकरण प्रस्तावना पृष्ट १" जिनेश्वरसूरि के समय सूराचार्य को सूरिपद तो क्या पर जन्म या दीक्षा भी शायद् ही हुई हो क्योंकि वि० सं० ११२० से ११२८ में अभयदेवसूरि ने सूराचार्य के गुरु द्रोणाचार्य के पास अपनी टीकाएँ का संशोधन कराया था। 5 श्री जिनेश्वरसूरि पाणिराज श्रीदुर्लभनी सभाई कुर्चपुरा गच्छीय चैत्यवासी साथी कांस्य पात्रनी चर्चा की। "सिद्धान्त मग भाग २ वृ० ९४" - x श्रोजिनेश्वरसूरि का अणहिल्लपुर पटुग में चैत्यवासी शिथिला. चारी उपकेशगच्छियों के साथ राजादुर्लभ (भीम) की राज सभा में शास्त्रार्थ हुआ इत्यादि। 'महाजन वंश मुक्तावलो पृष्ठ १६८' नोट-उपकेशगच्छ आचार्यों के पास जिनेश्वरसूरिपळे थे तो क्या उन्होंने कृतघ्नो हो अपने ज्ञान गुरु से शास्तार्थ किया ? यह कदापि संभव नहीं हो सकता है यह केवल द्वेष के मारे कवला और खरतर शब्द पर ही कलाना को गई है। 'लेखक'
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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