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________________ श्री जैन इतिहास ज्ञानभानु किरण नं० २३ श्रीरत्रप्रभसूरीश्वर पादकमलेम्यो नमः खरतर-मतोत्पत्ति भाग-दूसरा खरतरमतोत्पत्ति के विषय प्रमाणों के पूर्व मुझे यह बतला देना चाहिये कि खरतरमतवाले खग्तरशब्द की उत्पत्ति किस प्रकार मानते हैं । जैसे किः १-जिनेश्वरसूरि के पाटण जाने के विषय में ____१-कई खरतर कहते हैं कि वर्द्धमानसूरि अपने शिष्य जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि आदि १८ साधुओं के साथ पाटण गये थेx २-कई खरतर कहते हैं कि वर्द्धमानसूरि ने जिनेश्वरसूरि को श्राज्ञा दी थी कि तुम पाटण जाओ ___- अन्यदा श्रीवद्धमान सूरयः श्रीजिनेश्वर बुद्धिसागराद्यष्टादश साधुभिः परिवृता भूमंडले विहरंतः क्रमेण गुरराष्ट्र कीपत्तननगरे गतवंतः इत्यादि “षट् स्थान प्रकरण पृ० २" वच्छा ! गच्छह अहिल्लपट्टणे संययं जाओ तत्थ । सुविहि जइप्यवेसं चेइय मुणिणो निवारिति ॥ "रुदपाली संघतिलकसरि कृत दर्शन सप्ततिक" एक ग्रन्थ में तो खरतर वद्धमानादि १८ साधुओं को पाटण जाना बतलाते हैं तब दूसरे ग्रन्थ में वद्ध मानसूरि जिनेश्वरसूरि को पारण नाने की माज्ञा देते हैं । बलिहारी है खरतरों के प्रमाण एवं लेखकों की । 'लेखक'
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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