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________________ ( २८ ) का है कि जो महानुभाव शुद्ध प्रत्यय लगा सकते हों वे इन अशुद्ध शब्दों को भरी राजसभा में पण्डित मण्डली के समक्ष हार जीत के उपहार स्वरूप कैसे दे सकते हैं ? अतः सभ्य समाज में यह थोथी कल्पना स्वयं गन्धर्व नगर लेखा के समान भ्रांति का हेतु सिद्ध होता है। अब हम उपसंहार-स्वरूप इस बात को वास्तविकतयानिर्णीत कर जल्दी ही लेखनी को विश्राम देंगे। वह यह है कि खरतर और कँवला जय पराजय के द्योतक नहीं पर आपसी द्वेष के हेतु-भूत हैं । कारण यह है कि उपकेशगच्छीय साधुओं का और चन्द्रकुलीय साधुओं का विहार क्षेत्र प्रायः एक ही था । जब भगवान् महावीर के पांच छः कल्याणकादि का वाद-विवाद चल रहा था, तब जिनदत्तसूरि की कठोर प्रकृति के कारण लोग उन्हें खरतर-खरतर कहा करते थे, और उपके शगच्छीय लोग इस वाद विवाद में सम्मिलित नहीं होते थे, अतः इन्हें कँवले कँवले कहते थे। खरतरों ने इस शब्द को कुच्छ वर्षों के बाद गच्छ के रूप में परिणत कर दिया, और कँवलों ने कँवला शब्द को कतई काम में नहीं लिया । अाज तक भी उपकेशगच्छ के आचार्यों से कराई हुई प्रतिष्ठा के शिलालेख व प्रन्थों में कहीं कँवलागच्छ का प्रयोग नहीं हुआ है । जहाँ-तहाँ उपकेशगच्छ का ही उल्लेख नजर आता है। ____ खरतर शब्द की उत्पत्ति किस कारण, कब, और कैसे हुई इस विषय में हमने जिनेश्वरसरि से लगा कर जिनपतिसूरि तक के प्रन्थों एवं शिलालेखों के उदाहरण देकर यह परिस्फुट कर दिया है कि खरतर शब्द का प्रादुर्भाव, उद्योतनसूरि, वर्धमान
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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