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________________ ( १३ ) १२-भक्ष्याभक्ष्य शास्त्रों में पानी में पकाये हुये पदार्थों अर्थात् सचलित होने से उसे अभक्ष्य बतलाया है । उसको खरतर लोग खा जाते हैं और संगरियो आदि में किसी स्थान पर विद्वल नहीं कहा है उसको विद्वल बतलाते हैं। इस विषय को विस्तार से देखो प्रवचनपरीक्षा नामक ग्रन्थ में। १३-श्रावक की प्रतिमा ____ श्रावक को प्रतिमावाहन का किसी सूत्र में निषेध नहीं किया है पर खरतरों ने पंचारा का नाम लेकर श्रावक को प्रतिमावाहन करने का निषेध कर दिया पर यह विचार नहीं किया कि पंचम आरा में जब साधु साधुपना भी पालन करता है जो श्रावक के प्रतिमावाहन से कई गुणा कष्ट परिसह सहन करना पड़ता है तो फिर श्रावक प्रतिमावाहन क्यों नहीं कर सकेगा ? यदि कहो कि श्रावक से इतने परिसह सहन नहीं हो सकते हैं तो सोचना चाहिये कि साधु होते हैं वह सब श्रावक के घरों से ही होते हैं यदि वे श्रावक परिसह सहन करने में इतने कमजोर होंगे तो वे साधुत्व को कैसे पालन कर सकेंगे। खरतरों को तो ज्यों त्यों कर शासन के अंग प्रत्यंगों को काटना था। १४-मासकल्प १-वृहत्कल्पादि सूत्रों में साधुओं के नौकल्पी विहार का अधिकार लिखा हुआ मिलता है । अतः शीतोष्ण काल के आठ मास के पाठ कल्प और चतुर्मास के चारमास का एक कल्प एवं नौकल्प कहा है। पर खरतरों ने पंचमारा का नाम लेकर
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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