SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११ ) प्रतिक्रमण करते हैं । यह एक शास्त्रों की अनभिज्ञता या मिथ्या. हठ ही कहा जाकता है। ___यदि खरतर भाई कहते हैं कि आषाढ़ चर्तुमासी से ५० वें दिन सांवत्सरिक प्रतिकमण करना चाहिये । जब श्रावण दो हों तो दूसरे श्रावण और भाद्रपद दो हों तो पहिले भाद्रपद में सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करने से ही ५० दिन माने कहा जा सकता है पर वे भाई समवायांगजी सूत्र के पाठ को नहीं देखते हैं कि आषाढ़ चातुर्मासिक से ५० दिन तथा कार्तिक चातुर्मास के ७० दिन पूर्व सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करना चाहिये । जब दूसरे श्रावण तथा पहिले भाद्रपद में सांवत्सरिक प्रतिक्रमण किया जाय तो पिछले ७० दिनों के बजाय १०० रह जायगा अतः एक तरफ आज्ञापालन करने को जाते हैं तो दूसरी तरफ जिनाज्ञा भंग की. गठरी सिर पर उठानी पड़ती है । इसमें भी विशेषता यह है कि पूर्व के ५० दिन अध्रुव हैं और पिछले ७० दिन ध्रुव हैं। अतः अब किसकी रक्षा करना जरूरी है ? . ___ अगर हमारे खरतर भाई कार्तिक, फाल्गुन, आषाढ़, आश्विन और चैत्र मास दो होने पर पहिले मास को लुनमास मानकर सब धर्मकृत्य दूसरे मास में करते हैं तो इसी मुश्राफिक दो श्रावण भाद्रपद होने पर पहिले को लुनमास एवं कालचूला मान लें तो पहिले के ५० दिन भी रह सकते हैं और पिछले ७० दिन भी रह सकते हैं। ___जैसे सोलह दिनों का पक्ष होने पर भी चौदस को पक्षी प्रतिक्रमण कर उसको पक्ष ही कहते हैं। ११८ एवं १२२ दिन का चौमासी प्रतिक्रमण कर उसे चौमासी प्रतिक्रमण कहते हैं।
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy