SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्याण करने का अधिकार है। और जैनागमों में प्रभावती चैलना, मृगावती, जयन्ति, सुलसा, सेवानन्दा, देवानन्दा, और द्रौपदी वौरह महिलाओं ने परमेश्वर की द्रव्यभाव से पूजा की भी है पर प्रवल मोहनीयकर्म के उदय से वि० सं० १२०४ में जिनदत्तसूरि ने पाटण के जिनमंदिर में रक्त के छींटे देख स्त्रीजाति के लिये जिन पूजा करना निषेध कर दिया । आज करीब सात आठ सौ वर्ष हुए बिचारी खरतरियां जिन-पूजा से वंचित रहती हैं। इस धर्मान्तराय का मूल कारण जिनदत्तसूरि ही हैं। फिर भी पुरुषों को तकदीर ही अच्छी थी कि जिनदत्तसूरि ने किसी पुरुष को आशातना करते नहीं देखा वरना वे तो पुरुषों को भी जिनपूजा करने का निषेध कर देते जैसे स्त्रियों को किया था अर्थात् शासन के एक अंग के बजाय दोनों अंग काट डालते । 8-तिथि क्षय एवं वृद्धि १-तिथि का क्षय के हो तो क्षय के पूर्व की तिथि का क्षय मानना चाहिये जैसे अष्टमी का क्षय हो तो उसके पूर्व की तिथि सातम का क्षय समझ कर सातम को अष्टमी मान कर पर्वाराधन करना चाहिये तथा पूर्णिमा का क्षय हो तो तेरस का ® 'यथा क्षय पूर्वा तिथि कार्या वृद्धा कार्या तोत्तरा (उमास्वाति वाचक) 'अह जइ कहवि नलभई । तताउ सूरुगामेण जुत्ताउ ताप्रवर विद्ध अवरावि । हुजनहुपुब्ध तम्विद्धा' । एवं हाणचऊदसी । तेरसेजुत्तानदोसमावई । । . सरणंगउविराया । लोआणहोइजहपुज्जो ।
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy