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________________ ... २-सामायिक लेने के पूर्व अमुठ्ठिनों कहने का. विधान न होने पर भी खरतरों ने यह पाठ कहना शुरू कर दिया है। .. ३-साधु दीक्षा लेते हैं तब उनको नान्द के तीन प्रदक्षिणा करवाते हुये तीन बार सामयिक दंडक. उच्चराया जाता है । जो जावजीव के लिये है। पर खरतरों ने श्रावक के इतरकाल की सामयिक भी तीन बार उच्चरानी शुरू कर दी । यह कैसी अनभिज्ञता है ? ४-सामायिक लेने के बाद 'पांगरणुसंदिसाहूँ' का किसी स्थान पर विधान न होने पर भी खरतरों ने यह नयी ही क्रिया कर डाली है। ... ५-सामायिक में स्वाध्याय के स्थान तीन नवकार कहा जाता है । पर खरतरों ने ८ नवकार कहना शुरू कर दिया। यह नये मत की नयी क्रिया है। . ६-दो घड़ी की सामायिक में मन वचन काया के योगों से किसी प्रकार अतिचार लगा हो तो सामायिक पारने के पूर्व इर्यावही करना खास जरूरी है । पर खरतरे नहीं करते हैं। ... ७-सामायिक पारते समय 'सामाइयवयजुत्तो' पाठ कहना चाहिये पर खरतरों ने एक नया ही पाठ बना रखा है जो भयवंदसण्णभद्दो' कहते हैं। ४-पोषधव्रत , ... १-पर्वतिथि में श्रावक नियमित पौषधव्रत करे पर पर्व के अलावा अन्य दिन भी अवकाश मिले तो श्रावक पौषधव्रत कर सकते हैं पर खरतरों ने अज्ञानवश यह हठ पकड़ लिया है कि श्रावक पर्व के अलावा पौषधव्रत नहीं कर सकते । इसमें सिवाय
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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